कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

जब तस्वीर ने किया कचरा !

स्वच्छता किसे नहीं पसंद, कौन गंदगी के ढ़ेर में रहना चाहेगा..? कुछ लोगों को सफाई के लिए कहने की जरूरत नहीं होती और वे साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं हैं, जो गंदगी में ही रहना पसंद करते हैं और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपने घर को तो साफ रखना पसंद करते हैं, लेकिन घर के बाहर सड़क पर चलते हुए और दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फैलाने से बाज नहीं आते। ऐसे लोग के प्रकार भी अलग अलग होते हैं, जिनकी व्याख्या में एक पूरी किताब लिखी जा सकती है।
महात्मा गांधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत खुद हाथ में झाड़ू लेकर की तो ,ये एक सुखद अनुभूति थी। लगने लगा था कि शायद देशवासी भी इससे प्रेरणा लेंगे और हाथ में झाड़ू लेकर सड़क पर भले ही न निकलें लेकिन कम से कम सार्वजनिक स्थानों पर कचरा नहीं करेंगे और स्वच्छ भारत भियान का हिस्सा बनेंगे, लेकिन अफसोस बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिनके लिए स्वच्छता का कोई मतलब नहीं है, शायद आपने भी ऐसे लोगों को अपने आस पास जरूर देखा होगा। हालांकि एक सुखद एहसास ये भी है कि, बड़ी संख्या उन लोगों की भी है, जिनका मानस बदला है, और वे लोग अब हाथ में झाड़ू लेकर भले ही न निकले हों, लेकिन वे सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा फेंकने की बजाए अब कूड़ेदान का इस्तेमाल करने लगे हैं। मैंने अपने घर से लेकर दफ्तर तक इसकी एक झलक देखी है, इसको महसूस किया है। शायद आप में से बहुत से लोगों ने भी इस परिवर्तन को महसूस किया होगा।
बात स्वच्छता अभियान की है तो इसका एक और पहलू है, जो दर्शाता है कि स्वच्छता को लेकर एक जमात का क्या रवैया है..? ये जमात है, हमारे देश के नेताओं की, जिनकी कथनी और करनी का फर्क जग जाहिर है। दरअसल बात दिल्ली के इस्लामिक कल्चरल सेंटर के बाहर की है, तारीख 5 नवंबर 2014 की है, जब दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और कभी आम आदमी पार्टी की नेता रहीं शाजिया इल्मी स्वच्छता अभियान में हिस्सा लेने यहां पर पहुंची। दोनों ही नेताओं ने हाथ में झाड़ू लेकर सफाई की तो देखने में बड़ा अच्छा लगा, सफाई करते हुए इनकी तस्वीरें तो और भी सुंदर थी। लेकिन एक तस्वीर ने इस सफाई पर कचरा फेर दिया !
पीएम मोदी के हाथ में झाड़ू उठाने के बाद स्वच्छता अभियान के बहाने हाथ में झाड़ू लेकर सफाई करने की हमारे नेताओं में भी होड़ सी लग गयी। रोज अखबार और टीवी में कोई न कोई नेता या अफसर हाथ में झाड़ू लेकर दिखाई देने लगा। तस्वीरें सतीश उपाध्याय और शाजिया इल्मी की भी छपी और दिखाई दी, लेकिन इन तस्वीरों के साथ कुछ और तस्वीरें भी थी, जो काफी कुछ बोल रही थी। ये तस्वीरें बताने के लिए काफी थी कि किस तरह अख़बार और टीवी में कचरा साफ करने के बहाने अपना चेहरा चमकाने के लिए ये ढ़ोंग रचा गया। हालांकि पोल खुलने के बाद सफाई सतीश उपाध्याय और शाजिया इल्मी दोनों की आई की उन्हें तो अभियान में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन इस पर यकीन होता नहीं !
तस्वीरें पोल खोल रही थी कि किस तरह पहले से साफ जगह पर कचरा फैलाया गया। उसके बाद ये लोग हाथ में झाड़ू लेकर और चेहरे पर मुस्कराहट के साथ पहुंच गए तस्वीर खिंचाने, माफ कीजिए सफाई करने ! ये वही सतीश उपाध्याय हैं, जो दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने का सपना भी देख रहे हैं, अब चुनाव तक किसी न किसी बहाने अखबार और टीवी की सुर्खियां भी तो बने रहना है, फिर कचरा फैलाकर उसे साफ ही करने का ढ़ोंग क्यों न रचा जाए ! लगे रहो नेता जी, लगे रहो, आपमें मुख्यमंत्री बनने के पूरे गुण हैं !


deepaktiwari555@gmail.com

सोमवार, 3 नवंबर 2014

शरीफ पर विश्वास, मोदी पर अविश्वास…बधाई हो बुखारी साहब !

सैयद अहमद बुखारी, जामा मस्जिद के शाही इमाम, ऐसा लगने लगा है कि बुखारी साहब भारत के मुसलमानों के सबसे बड़े प्रतिनिधि है। दरअसल मेरा ये सामान्य ज्ञान बढ़ाया है, खुद बुखारी साहब ने। दरअसल बुखारी साहब ने 19 साल के अपने छोटे बेटे शाबान बुखारी को अपना वारिस घोषित किया है। 22 नवंबर को दस्तारबंदी की रस्म के साथ उन्हें नायाब इमाम घोषित किया जाएगा। दिल्ली में होने वाले इस समारोह में देश-विदेश से हजारों धार्मिक गुरू भी शिरकत करने वाले हैं।
इस समारोह के लिए इमाम साहब ने पाकिस्तान के वजीरे आज़म नवाज़ शरीफ को भी न्योता भेजा है, लेकिन बुखारी साहब ने अपने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को न्योता नहीं दिया है।
ये बात हैरान तो करती है, कि देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले इस समारोह में पड़ोसी देश पाकिस्तान के वजीरे आज़म को तो बुलावा भेजा गया है, जिस देश की नापाक हरकतों के चलते दोनों देशों के दोस्ताना रिश्तों में पैदा हुई दरार खाई के रूप में तब्दील होती जा रही है। लेकिन इमाम साहब ने अपने देश के प्रधानमंत्री को बुलाना जरूरी नहीं समझा।
इससे भी ज्यादा हैरान करता है, बुखारी साहब का इसके पीछे दिया जा रहा तर्क, जो कम से कम मेरे गले तो नहीं उतरता और शायद करोड़ों देशवासियों के गले भी नहीं उतर रहा होगा, हां, हो सकता है कि इमाम साहब की बात से इत्तेफाक रखने वाले भी लोग जरूर होंगे।
दरअसल इमाम साहब का कहना है कि देश का मुसलमान अभी भी नरेन्द्र मोदी से नहीं जुड़ पाए हैं, मुसलमानों मे मोदी के प्रति अब तक विश्वास नहीं जग पाया है। बुखारी ये भी कहते हैं कि  मुसलमानों में विश्वास जगाने के लिए मोदी को आगे आना चाहिए।
बुखारी की इस बात से एक और चीज झलकती है, कि बुखारी ही इस देश के मुसलमानों के सच्चे हितैषी हैं, और बुखारी ही भारत के मुसलमानों के एकमात्र प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने मोदी को न बुलाने का फैसला भी मुसलमानों की तरफ से अकेले ही कर लिया ! बुखारी को भारत के कितने मुसलमान अपना सच्चा प्रतिनिधि मानते हैं, ये तो इस देश के मुसलमान ही बता सकते हैं, लेकिन बुखारी के दावे से तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे ही भारत के मुसलमानों के सर्वमान्य प्रतिनिधि हैं और मुसलमानों ने अपने हक के सभी फैसले लेने का अधिकार भी इमाम साहब को सौंप रखा है ! पता नहीं, लेकिन बुखारी साहब को सुनकर तो कुछ ऐसा ही आभास होता है !
बड़ी अजीब बात है, बकौल बुखारी साहब, पीएम मोदी इस देश के मुसलमानों से नहीं जुड़ पाए हैं, तो उन्हें नहीं न्योता भेजा, लेकिन बुखारी साहब जरा ये बताने का कष्ट करेंगे कि क्या पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से भारत का मुसलमान दिल से जुड़ा हुआ है ..?
क्या नवाज़ शरीफ के प्रति भारत के मुसलमानों के मन में विश्वास जगा हुआ है कि शरीफ उनके सच्चे हितैषी है..?
क्या पाक के वजीरे आज़म नवाज़ शरीफ की नापाक हरकतों भारत के मुसलमानों के हक में हैं..?
अपने बेटे की दस्तारबंदी की रस्म में मोदी को न बुलाने के पीछे के बुखारी के तर्कों को सुनकर तो कम से कम ऐसा ही लगता है !
सवालों की फेरहिस्त तो काफी लंबी है, जिसका सटीक जवाब शायद ही बुखारी साहब दे पाएं, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुने हुए प्रधानमंत्री पर बुखारी साहब का अविश्वास समझ से परे है। अविश्वास सिर्फ बुखारी साहब का व्यक्तिगत होता तो समझ में आता, लेकिन बुखारी साहब ने तो भारत के सभी मुसलमानों का स्वयंभू प्रतिनिधि बनकर इसका ऐलान कर दिया ! खैर बुखारी साहब इसमें खुश हैं, तो अच्छा है, लेकिन बुखारी साहब आप इस बात को नहीं नकार सकते कि नरेन्द्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं, भविष्य का तो पता नहीं लेकिन जनादेश के रूप में जनता का विश्वास जीतकर ही वे यहां तक पहुंचे हैं, अब इस जनादेश में भी आपको हिंदु – मुसलमान का फर्क दिखाई दे रहा है, तो इसमें कोई क्या कर सकता है ! फिलहाल तो अपने छोटे बेटे शाबान बुखारी की दस्तारबंदी के लिए आपको अग्रिम शुभकामनाएं !


deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 2 नवंबर 2014

राबर्ट वाड्रा और शनिवार की रात !

किसी ने सही कहा है कि जब वक्त और हालात आपके अनुकूल न हो, तो शांत रहने में ही भलाई है, वरना नुकसान अपना ही होता है। अब देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को ही देख लिजिए। शनिवार की रात शायद ही वाड्रा साहब कभी भूल पाएंगे। जमीन सौदों पर मीडिया से बात करने से बचने वाले राबर्ट वाड्रा ने जब मुंह खोला और अपना आपा खोया तो, वो भी उस वक्त जब वक्त और हालात दोनों उनके पक्ष में नहीं थे। केन्द्र में यूपीए सरकार का बोरिया बिस्तर बंध चुका था, तो हरियाणा में भी कांग्रेस सरकार सत्ता से बेदखल हो चुकी थी। इतना ही नहीं हरियाणा के नव नियुक्त सीएम ने तो हरियाणा में जमीन सौदों पर जांच की बात से तक इंकार नहीं किया है।
इसी सवाल पर वाड्रा खुद तो शायद सीरीयस नहीं थे, लेकिन सवाल पूछने वाले न्यूज एजेंसी एएनआई के संवाददाता से उल्टा सवाल करने लगे- “Are you Serious”, वो भी एक बार नहीं चार- चार बार !  पत्रकार तो सीरियस ही था, तभी वाड्रा साहब से इतना सीरियस सवाल किया, लेकिन वाड्रा साहब को शायद ऐसा नहीं लगा, तभी तो जवाब देने की बजाए वो कुछ ऐसा कर बैठे, जो उन्हें क्या किसी को शोभा नहीं देता !
सवाल नहीं पसंद था, तो तरीके तो कई थे, जवाब न देने के, लेकिन वाड्रा साहब का शायद ये पसंदीदा तरीका था जवाब देने का। राबर्ट वाड्रा को शायद इस बात का एहसास हो चुका था, कि वो कुछ ज्यादा ही बोल और कर गए, ऐसे में इस शर्मनाक हरकत पर वाड्रा की सफाई भी चंद घंटों में आ गई। लेकिन सफाई में जो कहा गया, उस पर कैमरे में कैद वाड्रा की हरकत देखने के बाद कोई स्कूली बच्चा भी यकीन न करे !  वाड्रा साहब अपनी सफाई में कहते नजर आए कि उन्हें लगा कि कोई निजी फोटोग्राफर उनसे सवाल कर रहा है। लेकिन वाड्रा साहब को कौन समझाए कि उनकी ये हरकत पूरा हिंदुस्तान देख चुका था।
समय शायद कुछ ज्यादा ही खराब था वाड्रा कि, क्योंकि जिस जमीन सौदे के सवाल पर वाड्रा बिफर पड़े थे, उस सौदे पर ही कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में सवाल उठा दिए कि हरियाणा सरकार की सहमति के चलते रॉबर्ट वाड्रा ने कानूनों से खिलवाड़ करते हुए जमीन सौदे में 44 करोड़ रुपए कमाए। रिपोर्ट में कहा गया है, कि वाड्रा ने खरीदी गई जमीन को जल्दी ही बेचकर जो मुनाफा लिया, हरियाणा सरकार ने वाड्रा से उसे भी वसूलने की कोशिश नहीं की। मतलब साफ है कि हुड्डा सरकार भी वाड्रा के आगे नतमस्तक थी, अब हुड्डा सरकार नतमस्तक क्यों थी, ये लिखने की शायद जरूरत नहीं है !
बहरहाल वक्त और हालात अनुकूल न होने पर क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं, क्या करना चाहिए, क्या नहीं, अब तो शायद राबर्ट वाड्रा अच्छी तरह समझ ही गए होंगे !

deepaktiwari555@gmail.com