16 मई को जब आम
चुनाव के नतीजे आए तो जिस मोदी मैजिक की चुनाव से पहले बात हो रही थी, वो चुनावी
नतीजे के रूप में नजर आया। नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो लोगों की
उम्मीदों को भी पंख लगे कि अब उनके अच्छे दिन आएंगे लेकिन एक के बाद एक महंगाई की
डोज के तले लोगों की उम्मीदें दम तोड़ने लगी।
मोदी सरकार 100 दिन
पूरे कर चुकी है, ऐसे में सरकार के कामकाज का हिसाब किताब मांगा जाने लगा है। मोदी
सरकार अच्छे दिन के वादे पर अभी भी दमदारी से कायम रहते हुए वक्त मांग रही है, तो
लोग असमंजस में है कि मोदी सरकार की बातों पर कितना विश्वास किया जाए। कुछ लोगों
का भ्रम टूटने लगा है तो कुछ मानते हैं कि 100 दिन में हिसाब मांगना शायद जल्दबाजी
होगी। लोगों का भ्रम कितना टूटा और कितने लोग सरकार को और समय देने के पक्ष में
है, इसके लिए 15 अक्टूबर को होने वाले हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से
बेहतर और क्या हो सकता है..?
हरियाणा और
महाराष्ट्र के लिए चुनावी तारीख का ऐलान हो चुका है, ऐसे में चुनावी जंग में अपनी
अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों ने भी कमर कस ली है। हरियाणा और
महाराष्ट्र दोनों ही ऐसे राज्य हैं, जहां पर देश की दोनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस
और भाजपा के अलावा इनके सहयोगी भी खासा दम रखते हैं और सरकार बनाने में अहम भूमिका
निभाते हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है तो
भाजपा-शिवसेना के साथ। भाजपा और कांग्रेस
दोनों के ही सहयोगी महाराष्ट्र में अच्छा दखल रखते हैं। वहीं हरियाणा में भाजपा और
कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय दलों का बोलबाला दिखाई देता है। वैसे भी आगामी
विधानसभा चुनाव में हरियाणा में राजनीतिक दलों की बाढ़ सी आई हुई है। जाहिर है
दोनों ही राज्यों में चुनावी मुकाबला रोचक होनी की पूरी उम्मीद है।
हालांकि विधानसभा के
चुनाव स्थानीय मुद्दे हावी रहेंगे लेकिन आम चुनाव में मोदी लहर के सहारे प्रचंड
बहुमत से आने वाली मोदी सरकार के लिए दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनाव किसी
अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि 19 अक्टूबर को आने वाले इस चुनाव के नतीजे काफी
हद तक तय करेंगे कि मोदी सरकार 100 दिनों में चुनाव पूर्व किए अपने वादों पर कितना
आगे बढ़ पाई है और अब भी मोदी लहर का कितना असर बाकी है..?
कसौटी पर कांग्रेस
भी होगी, क्योंकि हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की ही
सरकार है। महाराष्ट्र में 15 सालों से कांग्रेस गठबंधन काबिज है तो हरियाणा में 10
सालों से। जाहिर है, आम चुनाव में करारी शिकस्त झेलने वाली कांग्रेस के लिए दोनों
ही राज्यों में अपनी सत्ता बचाना आसान काम नहीं है। यकीनन, आम चुनाव में 44 सीटों
पर सिमटने वाली कांग्रेस एक और हार के लिए तैयार नहीं होगी, लेकिन आम चुनाव में
महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस का घटा हुआ वोट प्रतिशत और तमाम ओपिनीयन पोल कांग्रेस
की सांसे फुलाने के लिए काफी है।
महाराष्ट्र में जहां
कांग्रेस सरकार के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों पर जवाब देने के लिए कुछ नहीं है, तो
हरियाणा में कांग्रेस का हाथ छोड़ने वाले दिग्गजों की फेरहिस्त खासी लंबी हो चुकी
है। कुल मिलाकर फैसला जनता को करना है, लेकिन जनता के सामने भी बहुत ज्यादा विकल्प
नहीं है, ऐसे में देखना ये होगा कि महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्यों में जनता
आखिर किस पर भरोसा करती है, सत्ताधारी कांग्रेस पर या फिर मोदी के नाम पर दोनों ही
राज्य में करिशमाई जीत के भरोसे बैठी भारतीय जनता पार्टी पर।
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