वो मासूम थे, उनके
हाथों में पेंसिल थी। लेकिन उन्हें क्या पता था कि पेंसिल हाथ में थामे उनका सामना
बंदूकों से होगा। उन्हें नहीं मालूम था कि मौत क्या होती है, लेकिन, वे मौत के
आगोश में समा गए ! जो बच गए वो जान गए
बंदूक क्या होती है, मौत कैसे आती है ? उन्हें ये भी समझ आ गया होगा कि कायर किसे कहते हैं
?
कायर उसे कहते हैं,
जो पेंसिल हाथ में थामे मासूम बच्चों पर गोलियों की बौछार करता है !
कायर उसे कहते हैं,
जो मासूमों के शरीर को गोलियों से छलनी करके अपनी ताकत का एहसास करना चाहता है !
कायर उसे कहते हैं,
जो मासूमों को मौत के घाट उतारकर बताना चाहता है कि उसका मकसद क्या है !
कायर तहरीक ए
तालीबान को कहते हैं, जो 132 मासूमों का खून बहाने के बाद ये शान से कहता है कि ये
हमला उसने किया है !
क्या कसूर था उन 132
मासूमों का ? इसका जवाब पूरी दुनिया
मांग रही है, लेकिन तहरीक ए तालिबान इस मातम का जश्न मना रहा है !
पाकिस्तान आतंकवाद
के खिलाफ लड़ने की बातें जरूर करता है, लेकिन दुनिया जानती है कि आतंकियों का सबसे
बड़ा पनाहगाह भी पाकिस्तान ही तो है। शायद ही कभी पाकिस्तान ने सोचा होगा कि पेशावर
एक ऐसी दर्दनाक त्रासदी का दंश झेलेगा, जिसे भुला पाना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं
होगा !
132 मासूमों की मौत
को तो भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन सवाल अब ये उठता है कि क्या अब पाकिस्तान की
नींद टूटेगी ? जाहिर है पाकिस्तान
अपनी धरती से आतंकी गतिविधियों को संचालित न होने दे ! आतंकियों के लिए
नरम रूख अपनाना छोड़ दे ! आतंकियों की पनाहगाह
न बने तो भविष्य में तो कम से कम किसी ऐसी दुखद घटना से बचा जा सकता है ! आतंकियों ने इस
कायराना हरकत के बाद बता दिया है कि ये उनकी फितरत में है, वे किसी पर भी गोली चला
सकते हैं, किसी पर भी बम फेंक सकते हैं, फिर चाहे सामने 5 साल का कोई मासूम ही
क्यों न खड़ा है ! स्कूल में बच्चों
को चुन चुन कर मौत के घाट उतारना और क्या था ?
उम्मीद तो यही करते
हैं कि भविष्य में अब एक भी शख्स आतंकवाद का शिकार न बने, लेकिन सवाल फिर वहीं
खड़ा है कि क्या कभी ऐसा होगा ? निगाहें एक बार फिर से पाकिस्तान की तरफ है कि क्या अब पाकिस्तान का रवैया
बदलेगा ?
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें