कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

बिहार – सियासी दोस्ती के मायने ?

बिहार विधानसभा चुनाव में भले ही अभी एक साल से अधिक का वक्त बचा हो लेकिन बिहार में सत्ता की मलाई खाने के लिए जोर आजमाईश अभी से शुरू हो चुकी है। 2014 के आम चुनाव में करारी शिकस्त खाने वाली सत्ताधारी जदयू के साथ ही राजद और कांग्रेस नेताओं के सिर से मोदी लहर का भूत उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। शायद यही वजह है कि मोदी लहर को चुनौती देने के लिए अब राजद, जदयू और कांग्रेस आगामी 21 अगस्त को 10 विधानसभा सीटों के होने वाले उपचुनाव से पहले साथ साथ आ गए हैं। कभी एक दूसरे के साथी रहे और फिर धुर विरोधी बने राजद के लालू प्रसाद यादव व जदयू के नीतिश कुमार अब गले में हाथ डाले दिखाई दे रहे हैं।
1993 में अलग अलग रास्ते जाने वाले लालू और नीतिश की राहें अब एक हो चली हैं। चुनावी मंच में दोनों एक दूसरे के गले में हाथ डालकर जनता को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी जुगलबंदी सियासी फायदे के लिए नहीं है बल्कि वे भाजपा से देश को बचाना चाहते हैं और इसके लिए साथ आने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।
आम चुनाव में करारी शिकस्त झेलने के बाद लालू की राजद, नीतिश की जदयू और कांग्रेस के सामने बिहार मे अपना अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा हो गया है। आम चुनाव में बिहार की 40 सीटों में से राजद जहां सिर्फ 4 सीटें जीत पायी थी, वहीं राज्य में सत्ताधारी जदयू सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल कर पायी थी जब्कि कांग्रेस की सीटों की संख्या भी सिर्फ 2 पर आकर सिमट गयी। वहीं भाजपा गठबंधन ने 31 सीटों पर जीत हासिल की, जिसमें से भाजपा के खाते में 22 सीटें आई।  
लालू और नीतिश कह रहे हैं कि देश को बचाने के लिए वे साथ साथ आए हैं, लेकिन दोनों की बातों पर यकीन तो नहीं होता। दोनों का साथ आना, मिलकर चुनाव लड़ना अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने की कवायद नहीं है तो और क्या है ?
हाजीपुर की चुनावी रैली में तो दोनों गले मिलते दिखाई दिए लेकिन कौन जाने इनके मन में क्या है ?
लालू के राज को जंगलराज बताने वाली जदयू और नीतिश पर बिहार को बर्बाद करने का आरोप लगाने वाले लालू आज जब ऐसे वक्त पर गले मिल रहे हैं, जब दोनों की ही पार्टियों को आम चुनाव में जनता ने सिरे से नकार दिया तो कैसे कोई यकीन कर सकता है कि दोनों सिर्फ अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए ही साथ नहीं आए हैं  ?
सियासत में अपने फायदे के लिए दुश्मनों से हाथ मिलाने का राजनेताओं का पुराना शगल है। ऐसे में क्यों लालू औऱ नीतिश की बात पर यकीन किया जाए कि जो वह कह रहे हैं वही उनके मन में भी है ! (पढ़ें - बिहार दुश्मन का दुश्मन दोस्त !)
बिहार के मुख्यमंत्री मांझी के विधानसभा चुनाव में गठबंधन की जीत पर नीतिश को सीएम बनाए जाने की बात पर लालू का लाल चेहरा कैसे लाल हुआ था, ये तो आपको याद ही होगा !
आज लालू प्रसाद पूर्व मुख्यमंत्री नीतिश को अपना छोटा भाई बताते नहीं थक रहे हैं लेकिन तकरीबन 20 सालों तक यही छोटा भाई लालू का सबसे बड़ा सियासी दुश्मन हुआ करता था !
आज लालू देश बचाने की बात कर रहे हैं, लेकिन यह वही लालू हैं जो भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं और चारा घोटाले के एक मामले में सीबाई की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें पांच साल की सजा सुनाई है। फिलहाल लालू सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर हैं।  
कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार में लालू और नीतिश की जुगलबंदी तो इसी ओर ईशारा कर रही है कि दोनों कांग्रेस के साथ मिलकर अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं और दोनों की नजरें एक बार फिर से अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर हैं। फिलहाल तो इनके सामने 21 अगस्त को 10 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की चुनौती है, देखते हैं इनकी सियासी दोस्ती का जवाब जनता किस तरह देती है ?


deepaktiwari5555@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें