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मंगलवार, 8 जुलाई 2014

एक मुख्यमंत्री का डर !

आम चुनाव से पहले उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन करते हुए कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड के दिल्ली वाले मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की जगह हरीश रावत को कमान इस विश्वास के साथ सौंपी थी कि हर मोर्चे पर विफल रहने वाले बहुगुणा के प्रति आम जन की नाराजगी नए मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत की ताजपोशी के साथ शायद कुछ कम होगी। कांग्रेस आलाकमान को उम्मीद थी कि आम चुनाव में कांग्रेस उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों को बचाने में सफल होगी, लेकिन मोदी लहर में प्रदेश की पांचों सीटों पर कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। मुख्यमंत्री की पत्नी तक हरिद्वार से चुनाव हार गई।
मुख्यमंत्री बने रहने के लिए हरीश रावत को 6 महीने के अंदर विधायक के रूप में निर्वाचित होना है, ऐसे में प्रदेश की दो विधानसभा सीटों डोईवाला और सोमेश्वर सीट रमेश पोखरियाल निशंक और अजय टम्टा के सांसद चुने जाने के कारण रिक्त हो गयी हैं। हरीश रावत को चुनाव लड़ने के लिए किसी सीट को खाली कराने की जरूरत नहीं थी और वे इन दोनों में से किसी एक सीट से चुनाव जीतकर पार्टी की सीटों की संख्या में भी ईजाफा कर अपने दम पर बहुमत के और करीब पहुंच सकती थी लेकिन हरीश रावत ने डोईवाला और सोमेश्वर सीट से चुनाव न लड़ने की बजाए धारचूला सीट को खाली कराया, जो कांग्रेस के पास ही थी। बहुगुणा के सीएम रहने के दौरान उऩके धुर विरोधी रहे और हरीश रावत के खास माने जाने वाले हरीश धामी ने मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट खाली कर दी।
हरीश धामी सीएम रावत के खास माने जाते हैं, ऐसे में उनका रावत के लिए सीट खाली करना समझ में आता है, लेकिन हरीश रावत का दो रिक्त सीटों वो भी जो भाजपा कब्जे में थी, उनकी बजाए अपने विधायक की सीट खाली कराकर चुनाव लड़ने का फैसला कई सवाल खड़े करता है।
जाहिर है हरीश रावत को डोईवाला या सोमेश्वर सीट से चुनाव लड़ने में अपनी हार का डर है, शायद हरीश रावत को लगता है कि अब भी मोदी लहर उनकी जीत में बाधा बन सकती है। 2002 में और 2012 में मुख्यमंत्री बनने से चूक गए हरीश रावत किसी भी सूरत में चुनाव हारकर बड़े जतन से मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाना नहीं चाहते। 2002 में एनडी तिवारी उनकी राह में रोड़ा बन गए थे तो 2012 में कांग्रेस हाईकमान ने विजय बहुगुणा को सीएम बना दिया था। शायद इसलिए ही हरीश रावत ने सेफ सीट धारचूला को चुनाव लड़ने के लिए चुना, लेकिन ये सीट रावत के लिए कितनी सेफ साबित होगी ये तो चुनावी नतीजे के बाद ही सामने आ पाएगा लेकिन इतना तो तय है कि उत्तराखंड की तीनों सीटों पर हो रहे उपचुनाव में मुकाबला रोचक होगा।


deepaktiwari555@gmail.com

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