राजनीति में राज
करने का मौका न मिले तो फिर राजनीति करना व्यर्थ है। वैसे भी राजनीति में विरले ही
ऐसे होते हैं, जो सत्ता सुख न भोगना चाहते हों, फिर इसके लिए उन्हें किसी भी हद तक
क्यों न जाना पड़े। आम चुनाव के बाद बिहार में नीतिश कुमार की जदयू, लालू की राजद
का जो हाल हुआ उसके बाद दोनों को भी शायद ये समझ में आ ही गया है। बिहार में
विधानसभा की 10 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव से पहले कभी एक दूसरे के धुर विरोधी
रहे लालू और नीतिश की जुगलबंदी बताती है कि सत्ता के लिए वे किसी भी हद तक जाने को
तैयार हैं। हालांकि दोनों का ये याराना नया नहीं है और कभी दोनों साथ हुआ करते थे
लेकिन बदलते वक्त के साथ दोनों एक – दूसरे के राजनीतिक दुश्मन बन गए थे और एक
दूसरे पर कीचड़ उछालने तक का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। जिस बिहार में कभी नीतिश को
लालू राज किसी जंगलराज की तरह नजर आता था, वही नीतिश अब अपनी नई दुश्मन भारतीय
जनता पार्टी को हराने के लिए लालू के साथ जुगलबंदी करने से तक परहेज नहीं कर रहे
हैं। पीएम के लिए नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा का दामन छोड़ने वाले नीतिश को
शायद उस वक्त ये एहसास तक नहीं होगा कि उनका ये फैसला उन्हें अपने पुराने समाजवादी
साथी लालू प्रसाद यादव के करीब ले आएगा।
हाल ही में हुए आम
चुनाव में मोदी लहर में बिहार में जो हाल सत्ताधारी जदयू का हुआ था उसके बाद आगामी
विधानसभा चुनाव में अपनी नई दुश्मन भाजपा को हराने के लिए नीतिश कुछ भी करने को
तैयार दिखाई दे रहे हैं। आम चुनाव में राज्य में सत्तासीन होने के बाद भी 40 में
सिर्फ दो सीट जीतने वाली जदयू को शायद डर है कि ऐसा ही हाल विधानसभा उपचुनाव और
फिर उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का न हो। इसलिए ही घबराए नीतिश
कुमार अब भाजपा को हराने के लिए राज्य में राजद और कांग्रेस से तक हाथ मिलाने में
परहेज नहीं कर रहे हैं। हालांकि हश्र तो बिहार में लालू की राजद और कांग्रेस का भी
कुछ जदयू जैसा ही हुआ है। राजद जहां सिर्फ 4 सीटें जीत पाई थी, वहीं कांग्रेस को
बिहार में सिर्फ 2 सीट से ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में क्यों न राजद और कांग्रेस
नीतिश का ये ऑफर ठुकराते..?
राज्य में आगामी
विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए तीनों क्यों न हाथ
मिलाते..?
भाजपा या कहें मोदी
लहर का तीनों ही पार्टियों को कि कदर डर सता रहा है इसका अंदाजा इस बात से भी
लगाया जा सकता है कि भाजपा को टक्कर देने के लिए कुछ ही दिनों में बिहार की 10
विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस में गठबंधन हो
गया है, जिसमें 4 सीटों पर जदयू, चार सीटों पर राजद तो 2 सीटों पर कांग्रेस ने
मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
कहते हैं दुश्मन का
दुश्मन दोस्त होता है, बिहार में जदयू, राजद और कांग्रेस का हालिया गठबंधन तो कम से
कम इसी ओर ईशारा कर रहा है, ऐसे में अब देखना रोचक होगा कि इन तीनों की जुगलबंदी
उपचुनाव में क्या गुल खिलाती है। देखना तो ये भी रोचक होगा कि बिहार की जनता इस नए
राजनीतिक दोस्ती के क्या मायने निकालती है, और उपचुनाव में क्या फैसला सुनाती है।
हालांकि राह तो भाजपा
की भी इतनी आसान नहीं है। भाजपा को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि वो आम
चुनाव जैसे परिणाम बिहार में फिर से दोहरा सकती है, क्योंकि महंगाई की मार के तले दबी जनता उपचुनाव के
जरिए अपना गुस्सा दिखा सकती है, जैसे कि हाल ही में उत्तराखंड में देखने को मिला
जहां भाजपा को विधानसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।
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