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शनिवार, 9 नवंबर 2013

CBI – तोता जो कभी उड़ा ही नहीं !

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सीबीआई को असंवैधानिक क्या करार दिया सीबीआई की जांच के घेरे में आए नेताओं को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गयी। बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय के नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर विराम लगाने संबंधी फैसले से दहशत में आए जो नेता कल तक न्यायालय को पानी पी पीकर कोस रहे थे। वही नेता अब गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक फैसले से फूले नहीं समा रहे हैं। आखिर इस फैसले ने उनके लिए सीबीआई के शिकंजे से बाहर निकलने का एक रास्ता जो तैयार कर दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि सीबीआई का गठन कुछ वक्त के लिए गृह मंत्रालय के प्रस्ताव के जरिए किया गया था। 1 अप्रैल 1963 का वो प्रस्ताव न तो केंद्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही उसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी थी। लिहाजा वो विभागीय आदेश के अलावा कुछ भी नहीं है। ऐसे में DSPE एक्ट, 1946 के तहत सीबीआई पुलिस फोर्स की तरह बर्ताव नहीं कर सकती। हाईकोर्ट ने कहा है कि सीबीआई पुलिस फोर्स नहीं है, लिहाजा न तो वह जांच कर सकती है और न ही चार्जशीट दाखिल कर सकती है।
2जी मामले में आरोपी पूर्व संचार मंत्री ए राजा समेत कई आरोपियों ने तो इस आदेश के हवाला देते हुए उनके खिलाफ अदालती कार्यवाही रोकने की तक मांग कर डाली। कांग्रेस नेता सज्जन कुमार ने भी 84 दंगों में अपने खिलाफ दाखिल सीबीआई की चार्जशीट और जांच को गैरकानूनी करार देने की मांग की है। चारा घोटाले में जेल की हवा खा रहे लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी भी गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करती दिखाई दे रही हैं।  
जाहिर है सीबीआई की जांच के घेरे में मौजूद सभी लोगों के लिए गुवाहाटी हाईकोर्ट का फैसला संजीवनी की तरह आया और इसे भुनाने की कवायद भी इन लोगों ने शुरु कर दी थी लेकिन इनकी ये खुशी ज्यादा देर तक नहीं रह सकी और केन्द्र की अर्जी पर सर्वोच्च न्यायालय ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर 6 दिसंबर तक रोक लगा दी। गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले ने केन्द्र सरकार की नींद उड़ा दी थी ऐसे में इस फैसले के खिलाफ आनन फानन में केन्द्र ने इस फैसले पर रोक के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर दी ताकि कई अहम मामलों में सीबीआई जांच में कोई रुकावट न आए।
करीब 2500 जांच अधिकारियों समेत करीब 6000 कर्मचारियों वाली सीबीआई हर साल करीब 1000 केसों की जांच करती है, जिनमें से 66 प्रतिशत केस सिर्फ भ्रष्टाचार के ही होते हैं। गुवाहाटी हाईकोर्ट का फैसला निश्चित तौर पर इन केसों को प्रभावित करता और भ्रष्टाचारियों को कुछ हद तक राहत मिलती और उनके हौसले बुलंद होते ऐसे में सरकार का सुप्रीम कोर्ट जाना तो लाजिमी ही था। सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय से फिलहाल संजीवनी तो मिल गयी है लेकिन गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले ने सीबीआई के अस्तित्व पर सवाल तो खड़े कर ही दिए हैं। हैरत की बात तो ये है कि सीबीआई जिसे देश की सबसे बड़ी व विश्वसनीय जांच एजेंसी का तमगा प्राप्त है, वह कभी इस विश्वास को कायम ही नहीं रख पाई। सीबीआई पर सियासी दबाव में काम करने के आरोप लगते रहे तो राजनीतिक दलों पर भी अपने सियासी फायदे के लिए सीबीआई का इस्तेमाल करने के आरोप लगे। केन्द्र सरकारें भले ही इसे नकारते रहे हों लेकिन सर्वोच्च न्यायालय का सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की उपाधि से नवाजना और खुद सीबीआई निदेशक का एजेंसी पर सरकार के दवाब को स्वीकार करना सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता रहा है, लेकिन इस बार तो सीबीआई के अस्तित्व पर ही हाईकोर्ट ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
सीबीआई की जांच की धीमी रफ्तार कहें या फिर जांच में बाहरी दखल का असर पिछले पांच सालों में सीबीआई ने 300 से ज्यादा केसों की जांच को इसलिए रोक दिया क्योंकि उनकी तय डेडलाइन पूरी हो चुकी थी। इसके अलावा ऐसे केसों की फेरहिस्त भी लंबी है जिनमें सालों से सिर्फ जांच ही चल रही है। हालांकि सीबीआई ने केसों की जांच रफ्तार को तेज करने के लिए इसकी तय समय सीमा को दो से घटाकर एक साल कर दिया लेकिन इसके बाद भी सीबीआई के पास लंबित केसों की लंबी फेरहिस्त मौजूद है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सीबीआई कितने दबाव में काम करती है और कितनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता से कार्य कर रही है। इसके पीछे एक वजह जांच अधिकारियों और अन्य स्टॉफ की कमी भी हो सकती है लेकिन सिर्फ यही एक वजह का होना समझ में तो बिल्कुल नहीं आता।
बहरहाल आड़े मौके पर सीबीआई को ढाल बनाकर खुद को बचाने वाली सरकार अब सीबीआई को कैसे बचाती है ये तो 6 दिसंबर को ही सामने आएगा जब सरकार सर्वोच्च न्यायालय में सीबीआई को संवैधानिक ठहराने के लिए अपनी दलीलें पेश करेगी।


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एक्जिट पोल ने उड़ाई कांग्रेस की नींद !

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले तमाम समाचार चैनलों और एजेंसियों के एक्जिट पोल जहां भाजपा को चुनाव नतीजों से पहले ही खुशी की एक बड़ी वजह दे रहे हैं, वहीं कांग्रेस की मुश्किलों में ईजाफा करते दिखाई दे रहे हैं। एक्जिट पोल पांच राज्यों में से चार प्रमुख राज्यों दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं तो भाजपा का खुश होना लाजिमी भी है, लेकिन कांग्रेस की हार का दावा कर रहे ये एक्जिट पोल कांग्रेस को रास नहीं आ रहे हैं, शायद इसलिए ही कांग्रेस ने चुनाव आयोग की उस राय से झट से अपनी सहमति जता दी, जिसमें चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से चुनाव पूर्व होने वाले एक्जिट पोल पर बैन लगाने पर राय मांगी थी। कांग्रेस भले ही इसके पीछे ये तर्क दे रही है कि ऐसे सर्वे जनता के फैसले को प्रभावित करते हैं, लेकिन कहीं न कहीं कांग्रेस की इस मांग के पीछे एक डरी हुई कांग्रेस नजर आ रही है।
2014 के आम चुनाव से पहले काफी अहम माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पूर्व एक्जिट पोल में चार प्रमुख राज्यों में से दो राज्यों दिल्ली और राजस्थान में सत्ता में काबिज और दो राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता पाने को बेकरार कांग्रेस की संभावित हार से कहीं न कहीं कांग्रेस क्या कांग्रेस की जगह कोई दूसरा राजनीतिक दल होता तो शायद फिलहाल चुनाव पूर्व एक्जिट पोल पर उसका यही नजरिया होता, जो अभी कांग्रेस का इन सर्वे को लेकर है।
ऐसे सर्वे जीत की आस लगाए बैठे किसी भी राजनीतिक दल का मनोबल तोड़ने के लिए काफी है और यही अभी कांग्रेस के साथ भी हो रहा है। लेकिन कांग्रेस के पास इसका जवाब नहीं होगा कि आज से पहले जिन सर्वे में कांग्रेस की संभावित विजय दिखाई जाती थी उस वक्त तो कांग्रेस को ये सर्वे खूब भाते थे और कांग्रेसी इस पर खूब इतराते थे।  
कांग्रेस घबराई हुई है तो एक्जिट पोल में चार प्रमुख राज्यों में अपनी संभावित जीत देख रही भाजपाई खूब इतरा रहे हैं, इसलिए भाजपा को चुनाव पूर्व एक्जिट पोल से कई आपत्ति नहीं है और भाजपा की मानें तो कांग्रेस का इसको बैन करने के पक्ष में इसलिए है, क्योंकि वो अपनी संभावित हार से बौखला गई है। शायद इसलिए ही भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी ये तक बोल गए कि अगर कांग्रेस एक्जिट पोल सर्वे पर बैन लगाने की बात कह रही है तो क्यों ना चुनाव आयोग और न्यायालयों पर भी पाबंदी लगा दी जाए?
भाजपा का ये सवाल तो जायज है लेकिन भाजपा नेताओं को ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर ये सर्वे के नतीजे उल्ट होते तो शायद भाजपा अभी कांग्रेस वाली स्थिति में होती और इन सर्वे को बेबुनियाद बताने का कोई मौका नहीं छोड़ती। 
वैसे सवाल तो ये भी उठता है कि क्या चुनाव पूर्व एक्जिट पोल के नतीजे जनता को बरगला सकते हैं और बरगला सकते हैं तो किस हद तक..? कांग्रेस का तो यही मानना है कि ऐसा हो सकता है और ऐसे सर्वे जनता के फैसले को प्रभावित करते हैं लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर ये मानना है कि आज का मतदाता सर्वे में दिखाई जाने वाले संभावित जीत या हार को ध्यान में न रखते हुए स्थानीय मुद्दों और अपने क्षेत्र के प्रत्याशी को ज्यादा तरजीह देते हैं और उसी के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। कैडर वोट के मामले में हम इसे लागू नहीं कर सकते क्योंकि कैडर वोट तो पार्टी को मिलना ही मिलना है फिर चाहे पार्टी का प्रत्याशी कितना ही अच्छा या खराब क्यों न हों।  
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल तो ये है कि क्या वाकई एक्जिट पोल के नतीजे पक्षपात पूर्ण होते हैं? सर्वे के नतीजों की निष्पक्षता पर सवाल हमेशा से उठते रहे हैं लेकिन अगर सर्वे के संपूर्ण रॉ डाटा को भी संबंधित एजेंसियां सार्वजनिक करे तो कुछ हद तक इस सवाल को जवाब तो मिल ही सकता है। ये बात अलग है कि जिस पार्टी की संभावित हार दिखाई जाएगी उसके नेता तो हमेशा ही इन सर्वे के निष्पक्ष होने पर सवाल उठाते रहेंगे। वैसे भी ये सर्वे सैंपल के आधार पर होते हैं और उसी के आधार पर पूरे प्रदेश की सभी सीटों में किसी भी पार्टी की संभावित जीत या हार का आंकलन एजेंसियां करती हैं। इन सर्वे के आधार पर हम पूर्ण रूप से ये नहीं मान सकते की फलां राज्य में फलां दल की सरकार बनेगी ही क्योंकि जनता ने कई बार इन एक्जिट पोल को गलत भी साबित किया है।
बहरहाल सर्वे चाहें कुछ कह रहें हों, किसी को खुश की वजह तो किसी को दुखी कर रहे हों, लेकिन असल फैसला तो जनता की अदालत में ही होगा ऐसे में देखना रोचक होगा कि 8 दिसंबर को किसके चेहरे पर जीत खुशी होगी और किसके चेहरे पर हार का गम।


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गुरुवार, 7 नवंबर 2013

दीपावाली पर तोहफे की खुशी

दीपावाली से दो दिन पहले की बात है, एक पार्सल बुक कराने के लिए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पार्सल कार्यालय कम गोदाम में जाना हुआ। कर्मचारी से लेकर वहां रहे वहां रखे पार्सल सब कुछ अस्त व्यस्त ही नजर आ रहे थे। पार्सलों के बीच से जैसे तैसे में अंदर दाखिल हुआ तो नजारा कुछ यूं था। एक कर्मचारी पार्सल के ऊपर ही आराम से पालती मारकर बैठा हुआ था तो दूसरा वहां रखी एक मेज पर। एक तीसरा व्यक्ति हाथ बांधकर खड़ा हुआ था। पास ही पड़ी एक दूसरी मेज पर रंगीन कागजों में लिपटे कुछ गिफ्ट पैक रखे हुए थे। कुछ ड्राई फ्रूट टाईप पैकेट दिखाई दे रहे थे और साथ में कुछ बड़े बड़े पैकेट भी थे। जो शायद आज ही इन्हें मिले थे। कर्मचरियों के बीच दीपावली के गिफ्ट को लेकर चर्चा जोरों पर थी।
उसके कुछ अंश इश प्रकार हैं।
पहला कर्मचारी – यार दीपावली को सिर्फ दो दिन बचे हैं, लेकिन इस बार गिफ्ट बहुत कम मिले हैं।
दूसरा कर्मचारी – हां यार, जो गिफ्ट मिले भी हैं, वो बड़े छोटे – छोटे और सस्ते हैं।
तीसरा कर्मचारी निश्चिंत भाव में – अरे यार अभी दो दिन बाकी हैं दीपावाली पर और गिफ्ट आएंगे अभी तो।
कर्मचारियों की गंभीर चर्चा में दखल देते हुए मैंने बीच में अपना एक पार्सल बुक कराने के लिए उनको टोका तो उनकी शारीरिक भाषा देखकर ऐसे लगा जैसे मैंने कोई बड़ी भूल कर दी। खैर मेरा 10 मिनट के काम में उन्होंने दो घंटे लगा दिए और बीच बीच में उनके दीपावाली के तोहफों की चर्चा जारी रही, जो समय बीतने के साथ चिंता में तब्दील होती जा रही थी।
इसी बीच एक शख्स वहां पहुंचा तो सभी कर्मचारियों को बांछें खिल गयी। वो उसे देखते ही अपनी कुर्सी से खड़े होकर उसे दीपावली की बधाई देने लगे। दरअसल उस शख्स के साथ एक लड़का था जिसके हाथ में चमकदार रंगीन कागजों में लिपटे ड्राई फ्रूट के डिब्बे और कुछ दूसरे उपहार थे। उस शख्स ने एक कागज निकाला और सबके नाम के आगे पैन से कुछ लिखा और कर्मचारियों को दीवाली की बधाई के साथ ही तोहफे देने लगा। इसकी क्या जरुरत थी, ऐसा बोलते हुए बड़े ही सहज भाव से सभी कर्मचारियों ने अपना काम छोड़ पहले तोहफे स्वीकार कर लिए।
ये वाक्या बहुत ही आम है, जो आपने भी दीपावाली पर अपने आस पास देखा होगा। आपको भी दीपावाली पर इस तरह के तोहफे मिले होंगे, मुझे भी मिले हैं। लेकिन जिस रेलवे पार्सल कार्यालय के बहाने मैं तमाम ऐसे सरकारी दफ्तरों में दीपावाली से पहले होने वाले तोहफों की सुगबुगाहट और चर्चा की बात कर रहा हूं वह सिर्फ दीपावाली पर तोहफों के मिलने का एक आम घटनाक्रम तो बिल्कुल भी नहीं दिखाई देता है।
जाहिर है जो लोग तोहफों की लालसा पाले बेकरारी से तोहफों का इंतजार करते हैं वो उन तोहफों के बदले सालभर तोहफे बांटने वाले के लिए काफी कुछ करते होंगे। तोहफे बांटने वालों के कई ऐसे काम आसानी से कर देते होंगे, जो या तो नियमों के खिलाफ होते होंगे या फिर इससे उन्हें मोटा मुनाफा होता होगा। वैसे भी आज के समय में ऐसे ही कोई मुफ्त में किसी को क्यों तोहफे बांटेगा..?
दरअसल ये तोहफे बांटने वालों के एक तरह का इन्वेस्टमेंट होता है, जिसे वे दीपावाली के मौके पर करते हैं और फिर सालभर इस इन्वेंस्टमेंट का रिटर्न लेते रहते हैं। वैसे इसे देशी भाषा में रिश्वत कहते हैं, जो कि गैर कानूनी है लेकिन दीपावाली पर दिया गया तोहफा न तो रिश्वत कहकर दिया जाता है और न ही रिश्वत कहकर लिया जाता है, इसे तो बस मिठाई कहा जाता है, जो खूब खिलाई भी जाती है और खाई भी जाती है।
खास बात तो ये है कि मलाईदार पदों पर बैठे कई आला अधिकारियों को ये नजराने हरे हरे नोटों के रूप में मिठाई के डिब्बे में बंद कर दिए जाते हैं और इसे भी नाम मिठाई का ही दिया जाता है वैसे भी देखना वालों के लिए तो ये मिठाई का ही डिब्बा है। बहरहाल जिन्हें इस तरह के खूब तोहफे मिले उनकी दीपावाली तो खूब रोशन रही लेकिन जिन्हें कम तोहफे मिले वे बेसब्री से अगली दीपावाली का इंतजार जरुर कर रहे होंगे।

फिलहाल तो सभी मित्रों को मेरी तरफ से दीपावली की शुभकामनाएं


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