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बुधवार, 28 अगस्त 2013

ये भूख है बड़ी..!

2014 को ध्यान में रखते हुए चार महत्वपूर्ण राज्यों दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने देश के गरीबों का पेट भरने का इंतजाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और लोकसभा में खाद्य सुरक्षा विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया..!
विपक्ष ने भी संशोधन के जरिए जरुर इसमें अपनी भूमिका बनाने की कोशिश की लेकिन वास्तव में विपक्ष चाहकर भी इसका विरोध नहीं कर सकता था लिहाजा ये जानते हुए भी कि ये खाद्य सुरक्षा विधेयक नहीं बल्कि वोट सुरक्षा विधेयक भाजपा सहित तमाम विपक्षी दलों ने इस बिल के रास्ते में अड़चन लगाने के अपने इरादे छोड़ दिए..! हालांकि बिल की टाइमिंग को लेकर भाजपा के मुरली मनोहर जोशी से लेकर सपा के मुलायम सिंह यादव ने जरुर बहस के दौरान अपनी दिल की भड़ास बाहर निकाली..!
खाद्य सुरक्षा विधेयक की अगर बात करें तो इससे देश की 67 फीसदी आबादी को हर महीने 5 किलो अनाज प्रति व्यक्ति के हिसाब से बाजार से कम मूल्य पर दिया जाएगा। चावल 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से तो गेंहू 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से जबकि बाकी अनाजों को 1 रुपये प्रति किलो के आधार पर देश की 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को दिया जाएगा..!
बहुत अच्छी बात है कि कम से कम कोई गरीब परिवार जैसा सरकार सोच रही है कि भूखा नहीं सोएगा और उस खाने के अधिकार के जरिए सरकारी राशन की दुकान से उसके हिस्से का अन्न मिलेगा लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस नीयत से खाने का अधिकार बिल लाया गया है, क्या वास्तव में क्रियान्वयन तक ये नीयत कायम रह पाएगी..!
देश की 67 फीसदी आबादी यानि की करीब 80 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए अनाज की मांग 5.5 करोड़ मिट्रिक टन से बढ़कर 6.1 मिट्रिक टन हो जाएगी। साथ ही फूड सब्सिडी लागू होने पर सरकार के खजाने पर अतिरिक्त बोझ करीब 20,000 करोड़ रुपये होगा। इसके लिए करीब 6.123 करोड़ टन फूडग्रेन्स की जरूरत होगी और फूड सब्सिडी बिल पर कुल फूड सब्सिडी कवर करीब 1.3 लाख करोड़ रुपये होगा।
क्या दम तोड़ती अर्थव्यवस्था के बीच सरकार इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए फंड जुटाने के साथ ही संसाधनों का इंतजाम कर पाएगी..?
क्या 80 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए दिल्ली से जो पैसा चलकर राज्यों में जाएगा और फिर पूरे सिस्टम के जरिए गरीबों तक अन्न पहुंचेगा वह क्या उतनी ही मात्रा में पहुंचेगा और उसकी गुणवत्ता पर कोई बदलाव नहीं आएगा..?
क्या गारंटी है कि दूसरी सरकारी योजनाओं की तरह ये योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट नहीं चढ़ेगी..? क्या वास्तव में गरीबों को उनका हक मिल पाएगा और उनके हिस्से का खाद्यान्न पीछे के दरवाजे से निजी गोदामों में नहीं जाएगा..?
ऐसे तमाम सवाल हैं जो खाने के अधिकार के सही क्रियान्वयन को लेकर लगातार जेहन में उठ रहे हैं..! ये सवाल उठने इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि इससे पहले भी ऐसी तमाम सरकारी योजनाएं हैं, जो शुरु तो की गयी थी आमजन के लिए लेकिन वास्तविक हकदारों को उन योजनाओं का लाभ कभी मिल ही नहीं पाया..! सबसे बड़ा और सबक लेने वाला उदाहरण भी यूपीए सरकार की एक औऱ महत्वकांक्षी योजना मनरेगाही है, जिसके बूते यूपीए ने सत्ता सुख तो भोगा लेकिन इस योजना ने भ्रष्टाचार के निए नए रिकार्ड खड़े किए..!
121 करोड़ की आबादी वाले जिस देश में भूखों की तादाद ही करीब 45 करोड़ से अधिक हो, भूख से हर रोज हजारों लोग दम तोड़ते हों उस देश को शायद ऐसे किसी योजना की सबसे ज्यादा जरुरत है लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या ये विधेयक भूखे सोने वाले के भूख के डर को कभी पूरी तरह मिटा पाएगा..?
वहीं खाद्य सुरक्षा विधेयक आगामी चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट सुरक्षा विधेयक बन पाएगा या नहीं ये तो चुनाव नतीजों के बाद ही तय होगा लेकिन भारत जैसे देश में जिसकी नसों में भ्रष्टाचार का कीड़ा पूरी रफ्तार से दौड रहा है वहां पर ये विधेयक भ्रष्टाचारियों के लिए एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह दिखाई दे रहा है..!
हालात तो यही बयां कर रहे हैं कि 80 करोड़ लोगों का पेट भरे न भरे लेकिन ये योजना भ्रष्टाचारियों की जेबें जरुर भर देगी..! 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा मिले या न मिले लेकिन भ्रष्टाचार करने वालों को अपने भविष्य के लिए कालेधन की सुरक्षा जरुर मिलेगी..!
उम्मीद तो यही करते हैं कि ऐसा न हो और 80 करोड़ क्या भारत के एक भी नागरिक को कभी भूखे पेट न सोना पड़े और सोनिया गांधी ने जो प्रतिबद्धता इस बिल को लेकर दिखाई है और जो वादा देश की जनता से किया है वो पूरा हो और भविष्य में कभी किसी सर्वे में ये न कहा जाए कि विश्व के 95 करोड़ भूखों में से लोगों में से 45 करोड़ भारत में हैं..!


deepaktiwari555@gmail.com

सोमवार, 26 अगस्त 2013

जनता अपना फैसला कब सुनाएगी..?



वो बातें बड़ी बड़ी करते हैं...खुद को देश का सच्चा हितैषी बताते हैंभारत और भारतवासियों के विकास की बातें करते हैं, दम तोड़ती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बातें करते हैं..! बेरोजगारी दूर करने के साथ ही महंगाई से निजात दिलाने का वादा करते हैं..! विदेशी बैंकों में जमा कालेधन को भारत में वापस लाने की बात करते हैं, भ्रष्टाचार और अपराध को खत्म करने का भी वादा करते हैं..! धूर्त पड़ोसियों पाकिस्तान और चीन को सबक सिखाने का भी दम भरते हैं..!
इस सब के नाम पर देश की जनता से सत्ता की चाबी सौंपने की अपील करते हैं लेकिन...लेकिन अफसोस जब बारी आती है इस कसौटी पर खुद को साबित करने की तो ये भी उसी जमात में शामिल हो जाते हैं जिनके हाथ से सत्ता खुद को सौंपने की ये जनता से अपील कर रहे होते हैं..!
जाहिर है सभी एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं जो खुद को एक दूसरे से अलग दिखाने के सिर्फ ढोंग ही करते हैं..! कहावत भी है कि चोर-चोर मौसेरे भाई, बात बात पर कुर्सी – मेज तोड़ने वाले ये लोग अपने व्यक्तिगत हितों के लिए सामूहिक रुप से हुंकार भरते हुए संसद में मेज थपथपाने में देर नहीं करते क्योंकि ये इनकी कौम का जो मामला है..!
खुद की जान पर बन आई तो राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलटने में जरा भी देर नहीं की जिसने दागी नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर पूर्ण विराम तो नहीं लेकिन विराम लगाने का रास्ता जरुर खोल दिया था..! अपने राजनीतिक भविष्य पर संकट के बादल मंडराते देख आपस में लड़ने वाले सभी दल एक हो गए औऱ जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन संबंधी प्रस्ताव पर सर्वदलीय बैठक में सभी दलों की सहमति के बाद केन्द्रीय कैबिनेट ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी है..! जिसके बाद अब न तो निचली अदालत से दो साल या अधिक की सजा होने पर सांसदो, विधायकों की सदस्यता रद्द होगी और न ही हिरासत में रहते हुए चुनाव लड़ने पर रोक रहेगी..!
सत्ताधारी दल तो गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है लेकिन विपक्ष क्या कर रहा है..? विपक्ष इस सब का हवाला देकर जनता से 2014 में सत्ता की चाबी मांग रहा है लेकिन जब बात अपने किए किसी एक वादे को ही चुनाव पूर्व पूरा करने की बारी आई तो इन्होंने अपना असली रंग दिखा दिया..! ये अपने दागी साथियों को बचाने के लिए एकसाथ खड़े हो गए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की सरकारी कवायद का विरोध करने की बजाए कधे से कंधा मिलाकर चलने में भी इन्होंने जरा सी देर नहीं की..! सत्ता पक्ष के साथ ही क्या भाजपा, क्या सपा, क्या बसपा, क्या जदयू..? समूचा विपक्ष अपने साथियों के व भविष्य में अपने राजनीतिक भविष्य पर मंडराते संभावित खतरे से निपटने के लिए एक ही छतरी के नीचे आ गए..!
आपराधिक इतिहास वाले नेताओं की देश के छोटे बड़े सभी राजनीतिक दलों में कितनी पैठ है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मई 2009 की नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक 15वीं लोकसभा में 150 दागी सांसद हैं जिनमें से 73 के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। वहीं राज्यों की बात करें तो दागी विधायकों के मामले में झारखंड देश में सबसे अव्वल है, जहां पर कुल विधायकों में से 72 फीसदी (55 विधायक) विधायकों के खिलाफ कोई न कोई आपराधिक मामला चल रहा है। 55 में से भी 24 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। बिहार इस सूची में दूसरे नंबर पर है जहां पर 58 फीसदी (140 विधायक) विधायक दागी हैं जिनमें से भी 84 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। महाराष्ट्र इस फेरहिस्त में 51 फीसदी (146 विधायक) विधायकों के साथ तीसरे नंबर है जिनमें से 56 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। विधायकों की संख्या के साथ चौथे नंबर पर उत्तर प्रदेश विराजमान है, जहां दागी विधायकों का प्रतिशत 47(189 विधायक) है, जिसमें से 98 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
अन्य राज्यों में भी हालात कुछ जुदा नहीं है और बड़ी संख्या में दागी विधायक राज्य की विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। सिर्फ मणिपुर ही इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर किसी भी विधायक के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला नहीं है और सभी 60 विधायक बेदाग हैं।
राजनीतिक दलों के चश्मे से देखें तो इन्होंने क्या गलत किया..? कौन अपने भविष्य पर विराम लगने का रास्ता खुला रखना चाहेगा..? वही तो इन्होंने भी किया, सत्ता के लिए आपस में जूतम पैजार तक करने से बाज नहीं आने वाले ये नेता अपने भविष्य पर आंच आते देख एक सुर में गाने लगे..! आंकड़ें चीख चीख कर यही गवाही दे रहे हैं कि अगर राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए एक नहीं होते तो शायद हमारी संसद और देश की तस्वीर ही बदल जाती, जो शायद राजनीतिक दल कभी नहीं चाहेंगे..! सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तो इन्होंने पलटने में देर नहीं की पर जनता का फैसला ये नहीं पलट पाएंगे, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या जनता चुनाव में अपनी वोट की ताकत से दागियों के खिलाफ फैसला सुनाएगी..?  


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