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शनिवार, 8 जून 2013

आडवाणी- अभी जिंदा है उम्मीद..!

डूबते हुए सूरज का नजारा मनमोहक भले ही होता है लेकिन सूरज के इस रुप को कोई सलाम नहीं करता। भाजपा में लाल कृष्ण आडवाणी के साथ भी कुछ ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है..! मोदीमय होती भाजपा में आडवाणी के कुछ न चाहने का कोई मोल अब नजर नहीं आ रहा है..! लेकिन आडवाणी के लिए डूबते हुए सूरज के मायने शायद कुछ अलग हैं..! आडवाणी डूबते हुए सूरज में भी अगले दिन की उम्मीद भरी सुबह का नजारा देख रहे हैं जो आडवाणी के मन में 2014 में एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में पीएम की कुर्सी की उम्मीद को जिंदा रखे हुए है..! शायद आडवाणी की यही उम्मीद नरेन्द्र मोदी को 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर पीएम पद का उम्मीदवार होता नहीं देखना चाहती और शायद यही गोवा में भाजपा की कार्यसमिति की बैठक से पहले आडवाणी की बीमारी की वजह भी है..!
लेकिन अफसोस अडवाणी की ये उम्मीद भाजपा में नरेन्द्र मोदी के जादू के आगे नाउम्मीदी में तब्दील होती दिखाई दे रही है। आडवाणी के मोदी को अहम जिम्मेदारी न देने की इच्छा के बावजूद भाजपा में मोदी की ताजपोशी की तैयारी को देखकर तो कम से कम यही लग रहा है..!
कुर्सी चीज ही ऐसी है कि उसे पाने के लिए आडवाणी क्या कोई भी नेता मरते दम तक नाउम्मीद नहीं होना चाहेगा ऐसे में आडवाणी ने पीएम की कुर्सी के अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए पूरा जोर लगा दिया तो क्या हुआ..? आखिर आडवाणी को भी तो हक है अपनी इच्छा को जताने का...ये बात अलग है कि भाजपा में मोदी के नाम के आगे उनकी इच्छा-अनिच्छा का बहुत ज्यादा असर अब दिखाई नहीं दे रहा है..!  
कुल मिलाकर वर्तमान में भाजपा में मोदी और आडवाणी की स्थिति को देखकर तो यही लग रहा है कि आडवाणी भाजपा के लिए डूबते हुए सूरज के समान हो गए हैं तो मोदी उगते हुए सूरज के समान जिसके नेतृत्व में भाजपा 2014 में केन्द्र की सत्ता में काबिज होने का सुनहरा ख़्वाब देख रही है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या नरेन्द्र मोदी इस ख़्वाब को हकीकत में बदल पाने में कामयाब होंगे..?


deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 5 जून 2013

बेड़ियों में जकड़े अखिलेश..!

देर से ही सही आखिर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को समझ में तो आ गया कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का हाल बुरा है। ये छोड़िए मुलायम ने इस बात को स्वीकार भी कर लिया कि उनके सुपुत्र अखिलेश यादव कानून व्यवस्था को दुरुस्त बनाए रखने में विफल साबित हो रहे हैं लेकिन मुलायम ये कहना नहीं भूले कि वे अगर मुख्यमंत्री होते तो 15 दिनों में कानून व्यवस्था को सुधार देते..!
ये वही मुलायम सिंह यादव हैं जो कुछ महीने पहले कानून व्यवस्था को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा सवाल उठाने पर ये कहते सुनाई दे रहे थे कि सूप तो सूप छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद। (जरुर पढ़ें- छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद..!)
मुलायम सिंह को मायावती का कानून व्यवस्था पर सवाल उठना नागवार गुजरा था और मुलायम ने उल्टा बसपा सरकार के कार्यकाल की स्थितियों से इसकी तुलना करनी शुरु कर दी थी। मुलायम तब कह रहे थे कि बसपा सरकार में भी तो अपराध हुए थे ऐसे में मायावती को सपा सरकार पर सवाल उठाने का कोई हक नहीं है..!
लेकिन अब जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा है तो मुलायम सिंह को बदहाल कानून व्यवस्था दिखाई देने लगी है। अरे मुलायम सिंह जी ये चिंता कुछ महीने पहले कर लेते तो शायद ये हालात ही यूपी में न होते..! वैसे देर से ही सही आपकी इस चिंता से भी भविष्य में कानून व्यवस्था में बहुत बड़ा सुधार हो जाएगा इसकी उम्मीद कम ही है..! जहां तक बात है कि आप सीएम रहते हुए कानून व्यवस्था को 15 दिनों में सुधार देते तो ये ज्ञान अपने सुपुत्र अखिलेश यादव को दीजिए न...मीडिया में इस बघारने की क्या जरुरत है..?
मुलायम ये भी कहते सुनाई दे रहे हैं कि अखिलेश सरकार में उनका कोई दखल नहीं है और अखिलेश स्वतंत्र रुप से कार्य कर रहे हैं..! मुलायम की इस बात पर तो विश्वास नहीं होता है क्योंकि जिस अखिलेश के मंत्रिमंडल में मुलायम के राजनीतिक सफर में बरसों से उनके साथ रहे साथी शामिल हों उन पर क्या अखिलेश उन पर लगाम कस सकते हैं..? या फिर उनकी किसी बात को काट सकते हैं..? चाहे अनर्गल बयानबाजी की बात हो या फिर अपने अनुसार काम करवाने की बात..!
और अगर मुलायम सही कह रहे हैं और वास्तव में अखिलेश बिना किसी दबाव के स्वतंत्र रुप से काम कर रहे हैं फिर तो मुझे अखिलेश यादव की काबलियत पर शक होता है..! अखिलेश क्यों अपनी सोच को अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों और उन अधिकारियों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं जिनके कंधे पर प्रदेश के विकास की जिम्मेदारी है..?
अखिलेश ने क्यों अपने मंत्रिमंडल में दागी मंत्रियों को जगह दी..?
एक युवा मुख्यमंत्री से जो उम्मीदें प्रदेश वासियों को थी उन पर अखिलेश खरे क्यों न उतर पा रहे हैं..?
आखिर क्यों कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने में अखिलेश सरकार को पसीना छूट रहा है..? (जरुर पढ़ें- अखिलेश ने बदल दी यूपी की तस्वीर..!)
जाहिर है ये सब अखिलेश के लिए इतना मुश्किल नहीं है लेकिन अखिलेश यादव चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं और ये तभी संभव है जब वे कार्य करने के लिए...फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं..! जिसका सीधा मतलब कि मुलायम सिंह यादव झूठ बोल रहे हैं कि सरकार के कामकाज में उनका कोई दखल नहीं है..!
बहरहाल जो भी हो हम तो कम से कम यही उम्मीद करेंगे कि अखिलेश यादव अपने पिता और पिता के संगी साथियों की राजनीतिक बेडियों को तोड़कर बाहर निकलें और स्वतंत्र रुप से कार्य करें ताकि सरकार के बाकी बचे चार साल उस तरह न गुजरें जैसे सरकार का पहला साल बीता..!


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मंगलवार, 4 जून 2013

RTI - पर्दे में रहने दो…पर्दा न उठाओ

राजनीति भी क्या चीज है...जब तक अपना फायदा दिख रहा है तब तक तो सब ठीक है...जनता के बीच गला फाड़ फाड़ कर नेता इसका बखान करने से नहीं चूकते लेकिन जब अपनी ही पोल पट्टी खुलने का खतरा महसूस हो तो सब बकवास है..राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की बात पर तो कम से कम कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। क्या कांग्रेस..? क्या भाजपा..? क्या अन्य सभी राजनीतिक दल..? सबकी रातों की नींद उड़ी हुआ है..! राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की सूचना आयोग की कवायद इनमें से किसी के गले नहीं उतर रही है..! तर्क भी अजीब अजीब दिए जा रहे हैं....कह रहे हैं कि हम चुनाव आयोग को सारी जानकारी देते रहे हैं ऐसे में राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाना ठीक नहीं है..! अरे महाराज जब आप चुनाव आयोग को जानकारी दे रहे हैं तो फिर सूचना आयोग को देने में क्या दिक्कत है..?
आरटीआई का लाने का ढिंढ़ोरा पीट पीटकर वोट मांगने वाली कांग्रेस कह रही है कि ये फैसला उसे अस्वीकार्य है और इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होगी। केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद तो ये तक कह बैठे कि आरटीआई पर अंकुश बहुत जरुरी है...इसे इस तरह बेकाबू नहीं होने दे सकते। खुर्शीद साहब तो जानते हैं आरटीआई के नफा नुकसान...खुर्शीद की संस्था में उजागर हुए भ्रष्टाचार का मामला तो याद ही होगा आपको..!
आरटीआई को लेकर पारा भाजपा का भी खूब चढ़ा हुआ है। भाजपा का तर्क है कि इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होगी। समझ नहीं आ रहा कि इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर कैसे होगी..? मेरी समझ से तो इससे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए...जनता का विश्वास राजनीतिक दलों पर और बढ़ना चाहिएअब भाजपाईयों के इन तर्कों के पीछे की कहानी तो वे ही बेहतर जानते होंगे लेकिन आरटीआई के करंट का असर फिलहाल सभी राजनीतिक दलों पर साफ दिखाई दे रहा है..!      
जाहिर है आरटीआई के दायरे में रहने पर राजनीतिक दल किसी जानकारी को छिपा नहीं सकते...खासकर पार्टियों को मिलने वाले चंदे, सरकारी मदद, सस्ती जमीन और किराए में छूट आदि...ऐसे में इन्हें करंट तो लगना ही था..!
कुर्सी की लड़ाई में राजनीतिक दलों को विरोधी दल की हर बात पर...हर फैसले पर एतराज होता है और वे एक दूसरे को जमकर कोसते हैं लेकिन जब बात अपने हितों की आती है तो ये एक हो जाते हैं। यहां पर भी तो ऐसा ही कुछ हो रहा है राजनीतिक दलों को आरटीआई में लाने के फैसले के खिलाफ एक दूसरे के धुर विरोधी राजनीतिक दल साथ मिलकर इस लड़ाई को लड़ रहे हैं।
देश से जुड़े अहम मसलों पर इनकी एकजुटता कभी नहीं दिखाई देती...चाहे संसद चलने देने का मामला हो या फिर जनहित से जुड़े अहम मुद्दों पर एकजुट होकर फैसला लेने का मामला..! हां एक और मौका है जब इनकी एकजुटता देखने लायक होती है...वो है जब संसद में इनके वेतन भत्ते बढ़ाने की बात आती है। उस वक्त तो धव्निमत से ये विधेयक पास कर दिए जाते हैं क्योंकि ये उनकी व्यक्तिगत लाभ से जुड़ा हुआ मसला है न...जनता से जुड़ा हुआ नहीं..!
राजनीतिक दल जनता के हितैषी होने का दम भरते हैं...सत्ता में आने पर देश सेवा, जन सेवा की बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन ये राजनीतिक दल क्या-क्या कर रहे हैं..? कैसे-कैसे कर रहे हैं..? इसको जनता के साथ साझा करने को तैयार नहीं है।
अरटीआई  के नाम पर ये घबराहट क्यों है..? आरटीआई के नाम पर पसीना क्यों आ रहा है..? जाहिर है कि सब कुछ इतना स्पष्ट नहीं है जितना कि राजनीतिक दल जनता को दिखाने की कोशिश करते हैं।
चुनावों में आंख मूंद कर इन राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को वोट देने वाली जनता को अब इस बात को समझ लेना चाहिए कि जो राजनीतिक दल अपने जानकारियों को जनता से ही पर्दे में रखना चाहते हैं वे क्या इनका भला करेंगे..! वैसे आरटीआई पर नेताओं की छटपटाहट को देखकर तो इन पर एक पुराना गाना याद आ रहा है...पर्दे में रहने दो पर्दा न उठाओ...पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा..!


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सोमवार, 3 जून 2013

आडवाणी- ढ़लता हुआ सूरज..!

लगता है भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को अभी भी पीएम की कुर्सी मिलने की पूरी आस है..! ये बात अलग है कि उनके नाम की पैरवी करने वाला उनके सिवाय अब भाजपा में कोई नहीं है लेकिन अपने दम पर अपने सियासी बोलों के जरिए आडवाणी किसी भी तरह की गणित भिड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं..! ग्वालियर में आडवाणी का मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से बेहतर बताना तो कम से कम इसी ओर ईशारा कर रहा है..!
देखा जाए तो आडवाणी ने शिवराज को मोदी से बेहतर सीएम कहकर न सिर्फ पार्टी में नरेन्द्र मोदी का कद छोटा करने की कोशिश की बल्कि मोदी के पीएम पद की उम्मीदवारी की राह में रोड़ा अटकाने की भी पूरी कोशिश की..!
2014 में एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में पीएम इन वेटिंग का टिकट कन्फर्म करने के लिए आडवाणी चाहकर भी खुद की दावेदारी तो ठोंक नहीं सकते लिहाजा आडवाणी के पास एक ही रास्ता बचता है कि इस दौड़ में सबसे आगे चल रहे नरेन्द्र मोदी की चाल को धीमा कर दिया जाए और इसके लिए आडवाणी ने सहारा लिया शिवराज सिंह के नाम का..! आडवाणी को शायद ये उम्मीद थी कि मोदी का कद छोटा होने से मोदी अगर पीएम की उम्मीदवारी की दौड़ में पिछड़ते हैं तो ऐसे में क्या पता धोखे से ही सही उनका पीएम इन वेटिंग का टिकट कन्फर्म हो जाए..!
आडवाणी ने अपने इस बयान से न सिर्फ लोगों की नजरों में मोदी का कद घटाने की पूरी कोशिश की बल्कि मोदी को विरासत में विकसित गुजरात प्रदेश मिलने की बात कहकर कांग्रेस को मोदी के खिलाफ बैठे बिठाए एक मुद्दा दे दिया..! ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी जगह- जगह अपने भाषणों में गुजरात में कांग्रेस सरकार के गड्ढ़े भरने की बातें बड़े जोश के साथ करते हैं और गुजरात के विकास का श्रेय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे में लाल कृष्ण आडवाणी अगर ये कहें कि मोदी को विरासत में विकसित राज्य मिला तो मोदी के दावों पर सवाल उठने लाजिमी हैं..!
आडवाणी के मन की ख्वाहिश उनकी इस कोशिश के बहाने जुबां पर आयी तो मोदी के नाम पर 2014 में अपनी नैया पार लगाने को कोशिश में लगी भाजपा में भी भूचाल आना लाजिमी था ऐसे में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को सफाई देने खुद आगे आना पड़ा और राजनाथ सिंह ने मोदी को सर्वाधिक लोकप्रिय नेता कहकर न सिर्फ एक बार फिर से नमो नमो का जाप किया बल्कि आडवाणी के बयान का गलत मतलब निकालने की बात कहकर भी मामला ठंडा करने की कोशिश की..!
इतना ही नहीं कुछ दिन पहले तक मोदी के साथ बराबर की दौड़ लगा रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी खुद की तारीफ में निकले आडवाणी के बोल को मोदी की तरफ उछाल दिया और खुद को मोदी और रमन सिंह के बाद तीसरे नंबर पर रखकर इस विवाद से ही किनारा कर लिया..!
आडवाणी ने शिवराज को आगे कर मोदी को पीछे करने की कोशिश कर अपने लिए आखिरी रास्ता बनाने की कोशिश तो की लेकिन आडवाणी की इस कोशिश पर उनके अपनों ने ही पानी फेर दिया..! इतना सब होने के बाद आडवाणी को अब तो कम से कम ये समझ लेना चाहिए कि वे भाजपा में अब एक ढ़लते हुए सूरज की तरह हैं और ढ़लते हुए सूरज को कई सलाम नहीं करता..!

deepaktiwari555@gmail.com