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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

कामसूत्र ने किया फेल..!

भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रहा कामसूत्र हमेशा से ही चर्चित विषय रहा है। कामसूत्र के जिक्र पर जो भावना लोगों के मन में उद्धेलित होती है वो इसको गुपचुप तरीके से विस्तृत चर्चा का रूप देती दिखाई देती है। हालिया उदाहरण कामसूत्र 3डी फिल्म है जो निर्माण के दौर में ही सिर्फ अपने नाम के कारण ही दूसरी कई फिल्मों से कहीं ज्यादा चर्चित हो चुकी है..!
प्लेबॉय मैगजीन के कवर पेज पर नग्न तस्वीर देकर सनसनी फैलाने वाली शर्लिन चोपड़ा का नाम कामसूत्र फिल्म से जुड़ने से इस फिल्म की चर्चा और जोर पकड़ रही है। शायद इस फिल्म के नाम के कारण ही बड़ी संख्या में लोगों को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार भी है..!
कामसूत्र फिल्म की इस चर्चा के बीच पटना आर्टस कॉलेज में कला के एक छात्र के असाइनमेंट ने फिलहाल एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। दरअसल इस छात्र ने अपनी परीक्षा के अंतर्गत बतौर असाइनमेंट कामसूत्र से संबंधित दृश्यों की पेंटिंग बनाकर शिक्षिका के सामने पेश किया तो उसे फाइनल परीक्षा में फेल कर दिया गया।
जिस शिक्षिका के सामने छात्र ने बतौर असाइनमेंट कामसूत्र के दृश्यों की पेंटिंग को पेश किया उस शिक्षिका ने न सिर्फ छात्र को खरी खोटी सुनाई बल्कि पेंटिंग के दृश्यों में अश्लीलता होने का आधार देकर छात्र को फेल कर उसका पूरा साल बर्बाद कर दिया गया और साथ ही महिला शिक्षिका के सामने इस पेंटिंग को पेश करने पर इस घटना को यौन प्रताड़ना का मामला भी ठहराया गया। कॉलेज के शिक्षिक कामसूत्र के दृश्यों को कला से जोड़कर नहीं देखना चाहते थे जो छात्र की सोच से अलग था लिहाजा छात्र को इसकी सजा भगतनी पड़ी..!
यहां सवाल ये उठता है कि क्या कामसूत्र की पेंटिंग्स को कला से ना जोड़कर मात्र अश्लीलता से जोड़कर देखना सही है?
इसका जवाब एक बार फिर से व्यक्ति की सोच और मानसिकता में आकर ठहर जाता है। बेशक कामसूत्र भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है और खजुराहो की ऐतिहासिक गुफाओं में इसे बखूबी उकेरा गया है लेकिन जब जब कामसूत्र का जिक्र होता है जैसा कि आजकल कामसूत्र 3डी फिल्म चर्चा में है तो मैंने अपने आसपास इस चर्चा में ये पाया है कि कामसूत्र को कला से जोड़कर देखने वालों की संख्या न के बराबर है। जाहिर है ये हमारे समाज में संकुचित सोच को दर्शाता है और दर्शाता है इसके प्रति लोगों की मानसिकता को..! जो सिर्फ इस नाम के जिक्र पर अश्लीलता को ही अपने जेहन में उकेरती है न कि कला को..!  (जरूर पढ़ें-अबोध कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?)
जहां तक बात है कि क्या हम संस्कृति का हवाला देकर नग्न और बोल्ड तस्वीरें शिक्षक के सामने पेश करें जैसा कि पटना आर्ट्स कॉलेज में कला के छात्र ने किया तो ये इस पर निर्भर करता है कि वाकई में उस छात्र की मानसिकता कैसी है और किस सोच के साथ उसने महिला शिक्षक के सामने अपने असाइनमेंट पेश किए। लेकिन जिस तरह इसे कॉलेज के शिक्षकों ने यौन प्रताड़ना का मामला भी ठहराया तो इसे इत्तेफाक रखने वाले लोग मेरी समझ में कम ही होंगे क्योंकि मेरा व्यक्तिगत ये मानना है कि छात्र का सीधे फेल कर देना और इसे यौन प्रताड़ना का मामला ठहराने से पहले शिक्षिका को छात्र की सोच और मानसिकता को समझना चाहिए था और कला के प्रति उसकी गंभीरता को भी आंकना चाहिए था जो कि इस मामले में मेरी जानकारी के मुताबिक नहीं किया गया..!
छात्र की इस हरकत को अश्लीलता का आधार देकर इसका विरोध करने वाले इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर आघात बताते हैं। कामसूत्र भारतीय संस्कृति का हिस्सा होने के बाद भी भारतीय समाज में एक निषेध शब्द की तरह है ऐसे में अश्लीलता के आधार पर हम ये तो नहीं कह सकते की ये अभिव्यक्ति की आजादी पर अघात है क्योंकि जिस शब्द का जिक्र आज भी हमारे समाज में कानाफूसी की तरह होता है अगर उसका नग्न और बोल्ड तस्वीरों के रूप में सार्वजनिक प्रदर्शन हो रहा है तो इसके विरोध में स्वर उठेंगे ही। इसको लेकर जब तक लोगों की सोच और मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा तब तक मेरी समझ में लोग इसे अश्लीलता के रूप में ही देखेंगे न कि कला के रूप में..! (जरूर पढ़ें- सेक्स एजुकेशन- कितनी कारगर..? )
पटना की इस घटना से ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या छात्र का शिक्षिका के सामने कामसूत्र से जुड़ी पेंटिंग्स का प्रदर्शन गुरू-शिष्य परंपरा पर कहीं प्रहार तो नहीं है?
यहां पर भी सोच और मानसिकता का पैमाना ही मेरी समझ में सटीक जवाब ढूंढ़ पाएगा क्योंकि अपने असाइनमेंट को तैयार करने वाले छात्र की सोच वास्तव में अगर कामसूत्र को लेकर कला की ही है तो फिर इसे हम गुरु – शिष्य परंपरा पर आघात नहीं कह सकते।
यहां पर शिक्षिका का ये फर्ज बनता है कि वो कला की शिक्षिका होने के नाते अपनी संकुचित सोच का परिचय देने की बजाए कला को लेकर छात्रों की सोच का दायरा बड़ा करे अन्यथा पटना आर्टस कॉलेज की ये घटना जरूर कला के छात्रों के साथ ही इस घटना को सुनने जानने वालों पर एक आघात की तरह कार्य करेगी क्योंकि भविष्य में कभी भी कामसूत्र के जिक्र पर लोगों के जेहन में सिर्फ अश्लीलता ही उभरेगी कला नहीं..!
कुल मिलाकर सेक्स जैसे विषय और इस मुद्दे पर अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध होने के सवाल पर तो मेरी समझ यही कहती है कि इस पर प्रतिबंध होने की बजाए लोगों को अपनी सोच का दायरा बढ़ाना होगा...अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा नहीं तो इससे जुड़े मुद्दे भविष्य में भी सिर्फ नए विवादों को ही जन्म देंगे..!

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अखिलेश ने बदल दी यूपी की तस्वीर..!


आज सुबह के सभी प्रमुख समाचार पत्र देखे तो ऐसा लगा कि उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने सभी अखबारों को खरीद लिया है..! सभी अखबार अखिलेश सरकार की एक साल की उपलब्धियों के विज्ञापन से भरे हुए थे। कन्या विद्या धन योजना, बेरोजगारी भत्ता, वूमेन पॉवर लाइन, समाजवादी एम्बुलेन्स सेवा, लैपटॉप वितरण योजना और अवस्थापना एवं औद्यौगिक विकास के शीर्षक से सरकार की उपलब्धियों को खूब बखान किया गया था। उत्तर प्रदेश के नक्शे तो अखबार में देखकर ऐसा लगा मानो एक साल में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की काया पलट दी हो..!
उत्तर प्रदेश के सभी प्रमुख अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर मुलायम सिंह और अखिलेश याद की बढ़िया सी स्माईल करती फोटो के साथ लिखा था- उत्तर प्रदेश में 20 करोड़ जिंदगियों में परिवर्तन के 365 सुनहरे दिन(15 मार्च 2012 से 15 मार्च 2013)।  
अखिलेश और मुलायम सिंह की स्माईल करती तस्वीर को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे पूरा उत्तर प्रदेश मुस्कुरा रहा हो और उत्तर प्रदेश में किसी को कोई दुख तकलीफ नहीं रही..!
अखबार में विज्ञापन रूपी समृद्ध और भयमुक्त उत्तर प्रदेश की छवि देखकर दिल को बड़ा सकून मिला...लगा वाकई में सपा सरकार ने कमाल कर दिया और पता भी नहीं चला..! लेकिन अखबार के अंदर के पन्नों पर लूट, चोरी डकैती की खबरों पर नजर गयी तो पता चला कि अखबार के पहले पन्ने पर तो विज्ञापन रूपी ये वही भ्रमजाल है जो चुनाव से ठीक पहले वोटरों को अपने पक्ष में रिझाने के लिए रचा जाता है लेकिन इस बार सरकार की नाकामियों को ढ़कने के लिए रचा गया है..!
दिमाग पर ज्यादा जोर डाले बिना अखिलेश सरकार के एक साल के कार्यकाल में 27 सांप्रदायिक दंगों की याद भी ताजा हो गई जिनमें मथुरा, आगरा और फैजाबाद के दंगे भुलाए नहीं भूलते। आए जिन पुलिस की पिटाई और सपा कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी की खबरें अभी जेहन में ताजा ही थी। कुंडा सीओ जिया उल हक की हत्या की ख़बर की याद भी अभी धुंधली नहीं पड़ी थी। (जरूर पढ़ें- छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद..!)
लेकिन अखिलेश यादव के हिसाब से उत्तर प्रदेश के 20 करोड़ जिंदगियां सुकून से रह रही हैं...एक भी व्यक्ति परेशान नहीं है...किसी को किसी का भय नहीं है...न किसी बेरोजगार युवा को अपने भविष्य की चिंता है और न ही किसी भूखे को अपना पेट भरने की चिंता..! एक साल में प्रदेश में हुए 27 सांप्रदायिक दंगों से किसी को भी कोई शिकायत नहीं है...न ही किसी को अपनों को खोने की पीड़ा है..!
अखिलेश सरकार का एक साल पूरा होने पर तो अखिलेश सरकार द्वारा रचा विज्ञापनों का भ्रमजाल तो कम से कम यही कहानी कह रहा है कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे समृद्ध और भयमुक्त शासन वाला राज्य है..!
सरकार के एक साल के भ्रमजाल में प्रदेश की 20 करोड़ जनता को फंसाने के लिए अखिलेश सरकार को ज्यागा मशक्कत नहीं करनी पड़ी..! विज्ञापन के रूप में करोड़ों रूपए उड़ा देने भर से ये भ्रमजाल तैयार हो गया और अखिलेश यादव और उनकी सरकार के साथ ही मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी के नेता अखबारों पर नजर घुमा-घुमाकर इस आत्मसंतुष्टि में हैं कि सपा सरकार ने 365 दिनों में उत्तर प्रदेश की 20 करोड़ जनता की तकदीर बदल दी..! अखिलेश जी हमारी तरफ से भी सरकार का एक साल पूरा करने पर बधाईयां स्वीकार किजिए लेकिन माफ किजिएगा हमारा चश्मा विज्ञापन के इस भ्रमजाल के अंदर की तस्वीर भी बयां कर रहा है जो शायद आपके लिए तकलीफदेह होगी। (जरूर पढ़ें- अखिलेश यादव- तकदीर पर ग्रहण !)।

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गुरुवार, 14 मार्च 2013

अप्रेल में होगा आतंकी हमला..!


पाकिस्तानी संसद के निचले सदन में भारतीय संसद पर हमले के आरोपी अफजल की फांसी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया जाता है तो भारत के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे लोकसभा में आतंकवाद पर छपे छपाए बयान को पढ़कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। यहां तक तो ठीक था लेकिन शिंदे साहब लोकसभा में उसी बयान को दोबारा से पढ़ देते हैं जिसे वे सुबह के वक्त पढ़ चुके थे। शिंदे साहब ने यहां अपना दिमाग लगाने की भी जरूरत नहीं समझी और टोका टोकी के बीच पूरे मन से बयान पढ़ते रहे।(पढ़ें- आतंकवादः शिंदे ने फिर किया सरकार को शर्मिंदा)
शिंदे साहब पर गृह मंत्रालय के काम का तो कम उनकी उम्र का लगता है कुछ ज्यादा ही असर है इसलिए वे जब से गृहमंत्री बनाए गए हैं तब से काम को लेकर तो कम अपनी गलतियों को लेकर ही ज्यादा चर्चा में हैं। खैर छोड़िए शिंदे साहब से देश को इससे ज्यादा कुछ उम्मीद भी नहीं है..!
बात पाकिस्तान के अफजल कनेक्शन की हो रही थी...पाकिस्तानी संसद ने अफजल की फांसी को गलत ठहराते हुए न सिर्फ निंदा प्रस्ताव पास किया है बल्कि अफजल के परिजनों को उसका शव सौंपने तक की मांग की है। पाकिस्तान भी गजब है वहां की सरकार के नुमाइंदों को आतंकवाद की आग में झुलस रहा अपना देश नहीं दिखाई देता...उन्हें चिंता है तो कश्मीर की..! (पढ़ें- अफजल को फांसी देना गलतः पाक संसद)।
अफजल की फांसी पर पाकिस्तानी संसद में निंदा प्रस्ताव से एक बात तो कम से कम साफ ही होती है और वह है अफजल का पाकिस्तान कनेक्शन..!
दुर्भाग्य देखिए जम्मू कश्मीर में निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला को भी पाकिस्तान की भांति अफजल की फांसी का उतना ही दुख है जितना की पाकिस्तान को..! (जरूर पढ़ें- फिर से- पाकिस्तान की तो..!)।
इससे भी बड़ा दुर्भाग्य तो ये है कि इस सब के बाद भी कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया है। आतंकवाद पर सरकार का लचर रवैया देश के दुश्मनों का हौसला ही बढ़ाता है और नतीजा 2013 के तीनों महीनों जनवरी, फरवरी और मार्च में हम भारतीय सैनिकों का सिर कलम होने की घटना, हैदराबाद धमाके और श्रीनगर में सीआरपीएफ कैंप पर आत्मघाती हमले के रुप में देख ही चुके हैं। आतंकवादियों के बुलंद हौसलों पर सरकार की चुप्पी को देखकर डर लगता है कि जाने अप्रेल में क्या होगा..? (पढ़ें- लाठी लेकर अलर्ट रहो..!)।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कुछ बोलते नहीं, एक और गृहमंत्री शिवराज पाटिल का नाम याद आ रहा है जिन्हें बुढ़ापे में भी दिन में चार चार बार कपड़े बदलने से फुर्सत नहीं मिलती थी और एक गृहमंत्री हैं सुशील कुमार शिंदे जो सबसे कम समय में सबसे ज्यादा चर्चित गृहमंत्री का खिताब पा चुके हैं एक के बाद एक गलतियां करके..!
प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री जी आप दोनों से ही दरख्वास्त है देशवासियों की मेहनत की कमाई तो आपकी सरकार ने भ्रष्टाचार और घोटालों के हेलिकॉप्टर में उड़ा दी..! कम से कम देश को तो बचा लो वर्ना हैदराबाद जैसे धमाके होते रहेंगे...श्रीनगर जैसे आत्मघाती हमले होते रहेंगे और निर्दोष देशवासियों के साथ ही हमारे जांबाज जवान शहीद होते रहेंगे..! लेकिन लगता है आपको तब तक फर्क नहीं पड़ेगा जब तक इन धमाकों और आत्मघाती हमलों की आंच आपके अपने घर परिवार तक नहीं पहुंचेगी..! (जरूर पढ़ें- आम आदमी जाए भाड़ में..!)।

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लाठी लेकर अलर्ट रहो..!


सलमान खुर्शीद साहब आप भी खूब फर्ज निभा रहे हैं...एक तरफ आप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ को शाही भोज खिला रहे हैं और पाकिस्तानी बदले में हमारे देश में घुसकर हमारे जवानों को एके 47 की गोलियां खिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अब इसे आप संयोग कहें या कुछ और लेकिन मतलब तो कई सारे निकलते हैं..!
9 मार्च 2013 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत आते हैं...अजमेर शरीफ में जियारत करते हैं और उसके चार दिन बाद श्रीनगर में पाकिस्तानी आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के आत्मघाती आतंकी हमारे 5 जवानों को मौत की नींद सुला देते हैं। भारत का खुफिया तंत्र देखिए कितना मजबूत है गृहसचिव आरके सिंह कहते हैं कि सीमा पार से आतंकियों के भारत में दाखिल होने की सूचना पहले से थी लेकिन फिर भी हमारे 5 जवान क्यों शहीद हो गए इसका जवाब उनके पास नहीं है।
हैदराबाद धमाके से पहले गृहमंत्री शिंदे साहब भी कुछ ऐसा ही फरमा रहे थे कि धमाके की आशंका पहले से थी लेकिन हुआ क्या सबके सामने है। (पढ़ें- सरकार गरजती है आतंकी बरसते हैं..!)
जनवरी के पहले सप्ताह में सीमा पर पाक सैनिकों की बर्बर कार्रवाई को हम कैसे भुला सकते हैं। (पढ़ें- पाकिस्तान की तो..! )हमारी सरकार सिर्फ गीदड़ भभकी ही देती रह गई और सीमा पर बर्बर कार्रवाई के बाद पहले आतंकवादियों ने हैदराबाद को निशाना बनाया और उसके बाद श्रीनगर में सीआरपीएफ जवानों को।
ये छोड़िए हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी खुलेआम धमकी भी दे रहे हैं कि हिजबुल के विशेष फिदायनी दस्ते भारत पर और ऐसे ही आत्मघाती आतंकी हमले करेंगे लेकिन हमने क्या कर लिया..?
गृहमंत्री शिंदे कहते हैं कि हमें अलर्ट रहना होगा। शिंदे साहब क्या हमारे जवानों का काम सिर्फ दिन रात अलर्ट रहना ही है और पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों का काम कभी धमाके कर तो कभी गोलीबारी कर निर्दोष भारतवासियों और जवानों की हत्या करना..!
चार आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ कर लेते हैं...हमारी सरकार को इसकी खबर भी है लेकिन घुसपैठ करने वाले आतंकी क्या बिना पाकिस्तानी सैनिकों की मदद के घुसपैठ कर सकते हैं..? सीधा मतलब है कि पाकिस्तानी सैनिक आतंकियों को घुसपैठ करा रही है और फिर पाकिस्तान कहता है कि उसका आतंकियों से कोई लेना – देना नहीं है।
श्रीनगर में आत्मघाती हमले के बाद घायल जवानों को खून देने जा रहे सीआरपीएफ जवानों की गाडियों पर प्रदर्शनकारी पत्थरबाजी करते हैं...क्या ये लोग आतंकी समर्थक नहीं होंगे..? हमले के बाद दो आतंकी भागने में सफल हो जाते हैं...जाहिर है सीमा तो पार नहीं कर गए होंगे..! कहीं आस पास पनाह लेकर सुरक्षित रह रहे होंगे..! क्या जहां आतंकियों ने पनाह ली होगी वे उनके मददगार नहीं होंगे..!
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला का तो क्या कहना...ये जनाब संसद पर हमले के आतंकी अफजल की फांसी पर सवाल उठाते हैं उसके शव को परिजनों को देने की मांग करते हैं लेकिन आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 5 जवान शहीद होते हैं तो उमर अबदुल्ला शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने तक नहीं पहुंचते..! (पढ़ें- शहीदों को श्रद्धांजलि देने भी नहीं पहुंचे उमर अब्दुल्ला)
उमर अबदुल्ला को अपने जवानों की कितनी चिंता है इसका अंदाजा इनकी सरकार के इस आदेश से लगाया जा सकता है जिसके अनुसार सीआरपीएफ के जवान बिना हथियार ड्यूटी करेंगे यानि कि अगर 100 जवान स्थानीय पुलिस की मदद के लिए जाते हैं तो सिर्फ 10 जवान ही हथियार रखेंगे। (पढ़ें- बड़ा सवाल: बिना हथियार कैसे काम करेंगे जवान?) अरे महाराज जब जवानों के पास हथियार ही नहीं होंगे तो आतंकियों का मुकाबला कैसे करेंगे...आपकी तरह तो जवानों के पास भी वीवीआईपी सुरक्षा रहती नहीं है..!
सीआरपीएफ कैंप पर हमले के वक्त वहां मौजूद सभी जवानों के पास हथियार होते तो शायद न तो 5 जवान शहीद होते और न ही दो आतंकी भागने में सफल हो पाते..! लेकिन सरकार ने खुद ही अपने जवानों के हाथ बांध रखे हैं..आतंकी एके 47 से हमला करते हैं तो जवानों के हाथ में लाठी डंडे है..!
सरकार हमले के बाद खुफिया सूचना होने की बात करती है और भविष्य में अलर्ट रहने की बात कहती लेकिन एक के बाद एक कभी जम्मू में तो कभी श्रीनगर में तो कभी हैदराबाद जैसे धमाकों में निर्दोष देशवासियों के साथ ही जवानों के शहीद होने का सिलसिला जारी है। सरकार के रूख को देखने के बाद तो यही लगता है कि ये सिलसिला शायद ही कभी थमेगा..!

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सोमवार, 11 मार्च 2013

दिल्ली गैंगरेप- राम सिंह के बहाने..!


दिल्ली गैंगरेप के मुख्य आरोपी राम सिंह समेत सभी पांचों आरोपियों की फांसी की मांग तो गैंगरेप के बाद से ही लगातार पुरजोर तरीके से उठ रही थी लेकिन जब इनमें से एक राम सिंह की फांसी की खबर आई तो अपने आप में कई सवाल खड़े कर गयी। राम सिंह के परिजनों के अलावा शायद ही किसी को राम सिंह की मौत का अफसोस होगा लेकिन इसके बाद भी राम सिंह की मौत नयी बहस को जन्म देकर चली गयी..!
अतिसुरक्षित माने जाने वाली दिल्ली की तिहाड़ जेल में अगर कोई कैदी आत्महत्या करता है तो सवाल उठने लाजिमी है। ऐसे ही कुछ सवाल राम सिंह की फांसी लगाकर आत्महत्या के बाद भी उठ रहे हैं। राम सिंह के परिजनों के आरोपों के बाद सवाल सिर्फ एक है कि राम सिंह ने आत्महत्या की या फिर राम सिंह की हत्या की गयी..?
राम सिंह और उसके साथियों ने 16 दिसंबर 2012 की रात दिल्ली में चलती बस में जो किया उसके लिए मौत की सजा भी कम है लेकिन पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अति सुरक्षित माने जाने वाली तिहाड़ जेल में राम सिंह का फांसी के फंदे पर झूल कर मौत को गले लगाना जेल प्रशासन के साथ ही में बंद कैदियों की सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लगाता है..?
बीबीसी के मुताबिक वर्ष 2010 में देश की 1393 जेलों में कुल 1436 कैदियों की मौत हुई इसमें 92 कैदियों की मौत अस्वाभाविक कारणों से हुई, जिनमें आत्महत्या और कैदिया द्वारा हत्या शामिल है। 92 कैदियों में से भी 68 मौत आत्महत्या से हुई तो 12 कैदियों की साथी कैदियों ने हत्या की। साल 2000 से अब तक के आंकड़ें कहते हैं कि 12 सालों में भारतीय जेलों में 10 हजार से ज्यादा मौत हो चुकी है। सिर्फ तिहाड़ जेल की ही अगर बात करें तो बीते साल तिहाड़ में 18 कैदियों की मौत हुई है जिनमें से दो मामले आत्महत्या के थे। 15 दिनों में तिहाड़ में तीसरी आत्महत्या की घटना ने सबके होश उड़ा के रख दिए हैं।
इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि भारतीय जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखा जाता है और मौजूदा जेल स्टॉफ सभी कैदियों पर नजर नहीं रख सकता है लेकिन कड़े सुरक्षा इंतजामों वाले सेल में राम सिंह का फांसी के फंदे पर झूल जाना जेल प्रशासन की गंभीर चूक की ओर ईशारा करता है।
ऐसे में अगर राम सिंह के परिजन तिहाड़ जेल प्रशासन पर जेल में हत्या के आरोप लगा रहे हैं तो इस पर हैरान होने की कोई बात नहीं है। ऐसे में सुरक्षा में चूक की बात जब केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भी स्वीकार कर चुके हैं तो अब राम सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मामले की जांच के बाद सच्चाई से पर्दा उठने की उम्मीद है कि राम सिंह ने वाकई में आत्महत्या की या फिर राम सिंह की हत्या किए जाने के राम सिंह के परिजनों के आरोपों में दम है..!
बहरहाल राम सिंह की मौत ने एक बार फिर से भारतीय जेलों में कैदियों की सुरक्षा के बहाने भारत की सुस्त व लंबी न्याय प्रक्रिया पर  भी सवाल खड़े दिए हैं..? जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के सालों से लंबित पड़े मामले कहीं न कहीं कैदियों के मानस पर गहरा असर डालते हैं जिनके परिणाम जेल में आए दिन कैदियों की आत्मह्त्या की खबर के रूप में सामने आते हैं। ये वक्त सिर्फ राम सिंह की आत्महत्या या हत्या के मसले को सुलझाने का ही नहीं है बल्कि देश की विभिन्न अदालतों में सालों से विचाराधीन मामलों के निपटारे में तेजी लाने के संबंध में ठोस कदम उठाने पर विचार करने का भी है।

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अबोध कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?


हैवानियत की शिकार बनी घर के बाहर खेल रही दिल्ली की पांच साल की मासूम हो या फिर दिल्ली के ही एक सरकारी स्कूल कैंपस में दूसरी कक्षा की छात्रा के साथ दुष्कर्म की घिनौनी वारदात...दोनों ही घटनाओं ने विकृत मानसिकता का एक और घिनौना उदाहरण प्रस्तुत किया है कि किस तरह विकृत मानसिकता से ग्रसित लोग अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए अबोध बालिकाओं को भी निशाना बनाने से नहीं चूक रहे हैं।
इन दोनों ही घटनाओं में दोनों मासूमों का सामना होश संभालने से पहले ही बेदर्द दुनिया के उन हैवान चेहरों से हुआ जिनके लिए रिश्ते, मानवता और इंसानियत कोई मायने नहीं रखती। इनके लिए मायने रखती है तो हवस की भूख जो कभी दिल्ली में किसी अबोध को अपना शिकार बनाती है तो कभी चलती बस में किसी छात्रा के साथ गैंगरेप जैसी दिल दहला देने वाली वारदात को अंजाम देती है।
हम कहते हैं कि शिक्षा का उजियारा फैल रहा है...लोग शिक्षित हो रहे हैं...समाज बदल रहा है...लोगों की सोच बदल रही है लेकिन अगर ये सच है तो फिर क्यों ऐसी घटनाएं हो रही हैं ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है..? (जरूर पढ़ें- 12 महीने और 24 हजार 206 बलात्कार)
इससे भी बड़ा सवाल ये है कि आखिर क्यों अबोध कन्याएं यौन अपराध का शिकार बन रही हैं..? क्या अबोध कन्याएं विकृत मानिसिकता से ग्रसित लोगों के लिए एक सॉफ्ट टारगेट होती हैं...? इसको लेकर लोगों की सोच अलग – अलग है। समाज का एक वर्ग मानता है कि कि अबोध कन्याओं के साथ हो रहे यौन अपराधों के लिए आधुनिक महिलाएं जिम्मेदार हैं तो दूसरा वर्ग इससे इत्तेफाक नहीं रखता। इनका मानना है कि किसी कारणवश महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध स्थापित न कर पाने की कुंठा से ग्रसित लोग अबोध बालिकाओं को अपनी हवस की भूख शांत करने का जरिया बनाते हैं। (जरूर पढ़ें - दिल्ली गैंगरेप- यार ये लड़की ही ऐसी होगी !)
जहां तक बात आधुनिक महिलाओं की है तो इसे हम इससे नहीं जोड़ सकते कि आधुनिक महिलाओं का पहनावा या चाल चलन अबोध कन्याओं के साथ हो रहे यौन अपराधों को बढ़ावा दे रहा है क्योंकि आधुनिक महिलाओं का अबोध कन्याओं से तो कोई मेल नहीं है। अबोध कन्याएं न तो आधुनिक महिलाओं के पहनावे को समझती हैं न ही उनके चाल चलन से उनका कोई लेना-देना है।
अबोध कन्याओं से यौन अपराध सिर्फ और सिर्फ विकृत मानसिकता का ही परिणाम है और इसके लिए हमें आधुनिक महिलाओं के पहनावे या फिर उनके चाल चलन को जिम्मेदार ठहराने की बजाए इन घटनाओं को बढ़ने से रोकने के लिए ऐसे लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना होगा। (जरूर पढ़ें- क्या लड़की होना उसका कसूर था ?)।
जाहिर है ये घटनाएं नैतिकता के सिद्धांत को स्वीकार करने वाला हमारे समाज के पुरुषों के नैतिक लक्षण को तो नहीं झलकाती क्योंकि नैतिकता की बात करने वाले पुरुष कभी ऐसी घटना को अंजाम नहीं देंगे लेकिन नैतिकता ये भी कहती है कि आपको अपने आस पास के लोगों को भी नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहिए ताकि एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके और इसमें हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में अपनी भागीदारी दे।
ये समाज की ही जिम्मेदारी है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए विकृत मानसिकता से ग्रसित लोगों की सोच में बदलाव के लिए वे प्रयत्न करें लेकिन अमूमन ऐसा देखने में नहीं मिलता..! विकृत मानसिकता के लोगों की इस हालत के लिए कहीं न कहीं पूरा समाज जिम्मेदार हैं जिसमे हम सभी लोग आते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि ऐसे लोगों को समाज में दुत्कार दिया जाता है...उनसे लोग दूरी बनाने का प्रयास करते हैं और उन्हें हीन समझते हैं जो ऐसे लोगों के मन में समाज के प्रति लोगों के प्रति एक घृणित भाव पैदा करता है और इसका नतीजा कभी दूसरी में पढ़ने वाली अबोध कन्या के साथ घिनौनी वारदात के रूप में सामने आता है तो कभी पांचवी में पढ़ने वाली छात्रा के साथ। समाज के खराब बर्ताव की सजा अबोध कन्याओं को भुगतनी पड़ती हैं जिन्होंने अभी तक इस दुनिया को ठीक से देखा भी नहीं होता समझना तो दूर की बात है।
समाज के साथ ही पुलिस, प्रशासन और सुरक्षा तंत्र का लापरवाह रवैया भी कई बार अबोध कन्याओं के साथ यौन अपराधों को बढ़ावा देने में मददगार साबित होता है। ऐसे मामलों में खासतौर पर पुलिस का पीड़ीत परिवार के साथ खराब बर्ताव इसका अहम कारण है। जिसके चलते चाहकर भी पीड़ित परिवार अपनी शिकायत दर्ज नहीं कराता और शिकायत दर्ज कराने से पहले सौ बार सोचता है। अगर शिकायत दर्ज हो भी जाती है तो पुलिस का मामले में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की बजाए मामले को रफा दफा करने का प्रयास करना आरोपियों का मनोबल बढ़ाता है और वे ऐसी घटनाओं को दोबारा अंजाम देने से भी नहीं चूकते। (जरूर पढ़ें- सेक्स एजुकेशन- कितनी कारगर..?)
कुल मिलाकर अबोध कन्याओं के साथ यौन अपराध के लिए हम किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। समाज के साथ ही हम खुद और पुलिस प्रशासन सभी कहीं न कहीं इस सब के लिए जिम्मेदार हैं और सभी के संयुक्त प्रयासों से ही विकृत मानसिकता से ग्रसित लोगों की सोच में बदलाव लाया जा सकता है तभी ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। बस जरूरत है किसी को भी दुत्कारने की बजाए, उसे हीन साबित करने की बजाए उसे समाज में साथ लेकर चलने की।

deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 10 मार्च 2013

भाजपा से क्यों हुआ मोहभंग..?


2014 का आम चुनाव करीब है ऐसे में सियासी दल अपने – अपने पक्ष में माहौल बनाने में जी जान से जुटे हुए हैं। वे अपने विरोधियों की किसी भी गलती या कमजोर कड़ियों को कैश कराने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन ऐसे वक्त में पीएम इन वेटिंग की पदवी पाए भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का ये कहना कि यूपीए से जनता की नाराजगी के बाद भी जनता का भाजपा से मोहभंग हो गया है...अपने आप में कई बातें सोचने पर मजबूर करता है..!
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का बयान साफ ईशारा करता है कि न तो पार्टी विपक्ष मे रहते हुए जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतर पाई है और न ही पार्टी में अंदरखाने सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा के बहाने भाजपा पर लगे भ्रष्टाचार के दाग पर भी आडवाणी खिन्न नजर आए।
आडवाणी भले ही अपने इस बयान में ये भी जोड़ते हुए नजर आए कि इसके बाद भी पार्टी के बेहतर भविष्य को लेकर वे आशान्वित हैं लेकिन चिंता और आशा के इस गठजोड़ के गणित में कहीं न कहीं चिंता आशा पर हावी दिखाई देती है, जो भाजपा के लिहाज से तो बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता..!
लंबे वक्त से केन्द्र की सत्ता से दूर भाजपा की बेचैनी साफ दिखाई देती है लेकिन इस बेचैनी की दवा 2014 में भाजपा को मिल पाएगी इसकी भी उम्मीद बहुत ज्यादा नहीं है..! खासतौर पर चुनाव पूर्व पीएम केंडिडेट के लिए एनडीए में तो दूर भाजपा में ही एक सर्वमान्य नाम के लिए जद्दोजहद इस उम्मीद को धुंधला कर देती है..!
यहां पर दूसरा फैक्टर जो भाजपा की इस उम्मीद को और धुंधला करता दिखाई दे रहा है वो कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा का लड़ाई में लगातार कमजोर पड़ना भी है। इस पर कर्नाटक भाजपा सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के साथ ही नितिन गडकरी की कंपनी पर लगे कथित गड़बड़ी के आरोप भी भाजपा को दो कदम पीछे ही धकेलते हैं..!
ये कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा को 2014 में यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों का जो फायदा मिल सकता था उसे भाजपा अपनी कारगुजारियों के चलते गंवाती दिख रही है। ऐसे में आडवाणी की बात को नकारा नहीं जा सकता कि जनता अगर यूपीए सरकार से खुश नहीं है तो लोगों को भाजपा से भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। जाहिर है भाजपा 2014 में भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी सरकार का एक मजबूत विकल्प बनती नहीं दिखाई दे रही है..!
बात 2014 की हो...भाजपा की हो तो मोदी के जिक्र के बिना ये बात अधूरी सी लगती है। मोदी को लेकर भाजपा भले ही एकराय होती नहीं दिख रही है लेकिन हालिया तमाम चैनल के ओपिनियन पोल और सोशल नेटवर्किंग साईट्स के ट्रेंड पर नजर डालें तो कहीं न कहीं मोदी ही 2014 के मद्देनजर भाजपा के लिए संजवनी की तरह नजर आ रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या मोदी भाजपा में पीएम बनने की लालसा लिए बैठे पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं की महत्वकांक्षाओं को पार कर पाएंगे..?
बहरहाल जोर आजमाईश जारी है और अंतिम फैसला जनता को ही करना है...ऐसे में देखना रोचक होगा कि सत्ता की इस लड़ाई में जनता का किससे मोहभंग होता है और कौन जनता के दिलों पर राज करता है..?  अन्ना हजारे, योगगुरु बाबा रामदेव और आम आदमी पार्टी भी तो है मैदान में..!

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