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बुधवार, 10 जुलाई 2013

नेता जी, दाग अच्छे हैं..!

अधिकतर मामलों में सबूतों के अभाव में नेताओं को कोर्ट से राहत मिलते तो कई बार देखा था लेकिन पहली बार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से नेताओं की नींद उड़ते देखी है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला होने के कारण चाहकर भी नेता इस फैसले के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते लेकिन जिन नेताओं पर छोटा या बड़ा कोई भी मामला अदालत में लंबित है उनके दिल का दर्द उनसे बेहतर और कौन समझ सकता है..?
हमारे देश में आपराधिक रिकार्ड वाले नेताओं की फेरहिस्त काफी लंबी है। हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, अपहरण के साथ भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से घिरे नेताओं की संख्या काफी ज्यादा है औऱ हैरत की बात तो ये है कि इसके बाद भी या तो वे विधायक हैं या फिर सांसद..! सबसे बड़ी बात तो ये कि इनके लिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट पाना कोई मुश्किल काम नहीं है। चुनाव में ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेताओं को टिकट देने का दावा करने वाले हमारे देश के लगभग सभी छोटे बड़े राजनीतिक दल आपराधिक इतिहास वाले नेताओं को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाने में जरा भी नहीं हिचकते..!
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कि किसी भी मामले में दो या दो से अधिक वर्ष की सजा होने पर सांसद और विधायक की सदस्यता रद्द हो जाएगी और वे चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे अपने आप में एक ऐतिहासिक फैसला है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से न सिर्फ राजनीति में आपराधिक इतिहास वाले नेताओं की घुसपैठ पर रोक लगेगी बल्कि किसी भी अपराध को करने या उसमें किसी भी तरह से शामिल होने से पहले नेता सौ बार सोचेंगे..!
अभी तक किसी भी मामले पर सजा होने पर नेतागण जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को सुरक्षा कवच बनाकर फैसले के खिलाफ अपील लंबित होने पर अपने पद पर बने रहते थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सुरक्ष कवच को ही खत्म कर दिया है जिसके बाद दो या दो साल से ज्यादा की सजा होने पर सांसद और विधायक की सदस्यता रद्द हो जाएगी।   
आपराधिक इतिहास वाले नेताओं की देश के छोटे बड़े सभी राजनीतिक दलों में कितनी पैठ है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मई 2009 की नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक 15वीं लोकसभा में 150 दागी सांसद हैं जिनमें से 73 के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
वहीं राज्यों की बात करें तो www.myneta.info के मुताबिक दागी विधायकों के मामले में झारखंड देश में सबसे अव्वल है, जहां पर कुल विधायकों में से 72 फीसदी (55 विधायक) विधायकों के खिलाफ कोई न कोई आपराधिक मामला चल रहा है। 55 में से भी 24 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
बिहार इस सूची में दूसरे नंबर पर है जहां पर 58 फीसदी (140 विधायक) विधायक दागी हैं जिनमें से भी 84 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
महाराष्ट्र इस फेरहिस्त में 51 फीसदी (146 विधायक) विधायकों के साथ तीसरे नंबर है जिनमें से 56 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
विधायकों की संख्या के साथ चौथे नंबर पर उत्तर प्रदेश विराजमान है, जहां दागी विधायकों का प्रतिशत 47(189 विधायक) है, जिसमें से 98 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
अन्य राज्यों में भी हालात कुछ जुदा नहीं है और बड़ी संख्या में दागी विधायक राज्य की विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। सिर्फ मणिपुर ही इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर किसी भी विधायक के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला नहीं है और सभी 60 विधायक बेदाग हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जाहिर है, ऐसे नेताओं के माथे पर बल पड़ना लाजिमी है। कोर्ट ने अपने फैसले से न सिर्फ देश की संसद और विधानसभाओं को साफ करने की ओर कदम उठाया है बल्कि कोर्ट का ये फैसले उन नेताओं और राजनीतिक दलों के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो ये सोचते हैं कि पैसे और बाहुबल के आधार पर चुनाव जीतकर वे संसद या विधानसभा में आसानी से पहुंच जाएंगे और अपनी मनमानी करेंगे..!
देश के सर्वोच्च न्यायालय की अगर बात करें तो सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 60 हजार के करीब है जबकि वर्ष 2011 तक देश की विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या करीब 43 लाख 22 हजार से अधिक हैं। इससे देश के विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। (पढ़ें- इंसाफ- मौत के बाद..!)
ऐसे में अब उम्मीद है कि दागी सांसदों और विधायकों के संबंध में सर्वोच्च न्यायलय के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों के तेजी से निपटारे को लेकर भी सर्वोच्च न्यायालय कोई सकारात्मक कदम उठाए ताकि अदालत का ये ऐतिहासिक फैसला जल्द सार्थक हो और देश की संसद और राज्य विधानसभाओं से दागी नेताओं का पत्ता साफ हो।

deepaktiwari555@gmail.com

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