राजनीति में रहना है तो खबरों में बने रहना बहुत
जरुरी है। सरकारी अधिकारी से पहले समाजसेवी बने और फिर समाजसेवी से राजनीतिज्ञ बने
अरविंद केजरीवाल को शायद ये बात समझ में आ गयी है। इसलिए शायद अब केजरीवाल
सुर्खियों में बने रहने के लिए हर वो काम कर रहे हैं जो उन्हें देश की जनता के बीच
जिंदा रख सके। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर लगाए गए आरोपों के
बाद कहीं न कहीं लगता है कि केजरीवाल ने इस बार जल्दबाजी कर दी और इस बार उनकी
प्रेस कांफ्रेस में वो धार भी नहीं दिखाई दी...जिसके लिए आमतौर पर केजरीवाल जाने
जाते हैं। न ही केजरीवाल कोई इतना बड़ा धमाका गडकरी के खिलाफ कर पाए कि गडकरी के
साथ ही देश की मुख्य विपक्षी पार्टी मुश्किलों में घिरती नजर आती। उस पर उस किसान
गजानन घड़गे का पहले प्रेस कांफ्रेंस के बाद गायब हो जाना और फिर ये बयान देना की उसका
गडकरी से कोई विवाद नहीं है...औऱ ये कहना कि गडकरी जी ने मेरी मदद की है...ने
केजरीवाल एंड कंपनी पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे में केजरीवाल और दमानिया के
दूसरे आरोप कि महाराष्ट्र में गडकरी और अजीत पवार की सांठगांठ का आरोप है...इस बात
का खुलासा तो केजरीवाल और अंजलि उस वक्त ही कर चुकी थी जब सिंचाई घोटाले को उठाने
के लिए गडकरी के पास जाने की बात कही थी। जिस बड़े खुलासे का दावा प्रेस कांफ्रेस
से तीन चार दिन पहले तक किया जा रहा था...और जितनी उत्सुक्ता भाजपा से ज्यादा
कांग्रेस को और आम लोगों को इस प्रेस कांफ्रेंस को लेकर थी वो प्रेस कांफ्रेंस
शुरु होती ही निराशा में बदल गई। क्योंकि प्रचार खुलासे को लेकर प्रेस कांफ्रेस से
पहले किया गया था उससे जहां कांग्रेस ये मानकर बैठी थी कि अब उसके हाथ भाजपा के
खिलाफ बड़ा मुद्दा लग सकता है...लेकिन ऐसा हुआ नहीं...औऱ वैसे भी कांग्रेस
महाराष्ट्र में एनसीपी के सहयोग से सरकार चला रही है...और महाराष्ट्र सरकार के
तत्कालीन सिंचाई मंत्री जो एनसीपी से ताल्लुक रखते हें...उनसे सांठगांठ का आरोप
गडकरी पर लगाया गया तो कांग्रेस तो चाहकर भी इस मुद्दे को नहीं भुना
सकती...क्योंकि माहाराष्ट्र और केन्द्र में दोनों जगह एनसीपी कांग्रेस की बैसाखी
बनी हुई है। अऱविंद केजरीवाल के जिस जल्दबाजी में बिना बहुत कुछ साक्ष्य जुटाए वही
पुराने आरोप गडकरी के खिलाफ दोहराए तो उससे तो यही लगता है कि केजरीवाल अखबार और
टीवी की सुर्खियां बने रहना चाहते हैं...वैसे देखा जाए तो खुद के राजनीतिक वजूद को
जिंदा रखने के लिए केजरीवाल को कुछ न कुछ ऐसा करना ही होगा...और बड़े राजनेताओं पर
आरोप लगाकर इससे अच्छा तरीका दूसरा तो कई और नहीं हो सकता...लेकिन जो भी आरोप या
खुलासा करने का दावा केजरीवाल एंड कंपनी करती है निश्चित ही तौर पर उसमें उतना ही
दम भी होना चाहिए...या उन चीजों को बार बार दोहराने से केजरीवाल को बचना चाहिए। क्योंकि
देश भर में जिस माहौल के बीच अरविंद केजरीवाल ने अन्ना के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के
खिलाफ जंग का आगाज़ किया था...उससे लोगों को उम्मीदें उनकी औऱ उनकी टीम से बढ़ गई
थी...लेकिन अन्ना के अलग होने के बाद औऱ केजरीवाल के राजनीति में प्रवेश के बाद
लोगों का केजरीवाल एंड कंपनी से मोह भंग भी हुआ है...हालांकि इसके बाद भी केजरीवाल
के आंदोलनों में बड़ी संख्या में जिस तरह से लोग उनका साथ देने पहुंच रहे हैं उससे
लगता है कि लोगों का एक बड़ा वर्ग केजरीवाल के राजनीति के फैसले से इत्तेफाक रखता
है। ऐसे में वक्त में केजरीवाल को निश्चित ही चुनाव तक लोगों के जेहन में बने तो
रहना होगा...लेकिन उसके लिए रोज रोज वो बड़े-बड़े खुलासे करें या नेताओं पर हमला
करने के लिए खुद को पूरी तरह झोंक दें ये न तो संभव है और न ही केजरीवाल के लिए
ठीक है। ऐसे में लंबे समय तक टिके रहने के लिए केजरीवाल एंड कंपनी को एक निश्चित
अंतराल पर ही सही लेकिन पूरे दमखम और पुख्ता साक्ष्यों के साथ सीना ठोक कर भ्रष्ट
नेताओं को घेरने पर काम करना चाहिए ताकि न तो ऐसा लगे की केजरीवाल की धार कुंद हुई
है...और न ही उनके आरोपों को कोई सिरे से नकार सके...और सामने वालों को इसका जवाब
देना पड़े।
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