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शनिवार, 26 मई 2012

राम, गंगा और भाजपा का मिशन 2014


राम, गंगा और भाजपा का मिशन 2014


राम के बाद गंगा का सहारा…जी हां राम के बाद अब भाजपा गंगा मैया की शरण में आ गयी है…निर्मल गंगा को लेकर उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा बड़ा आंदोलन करेगी…मुंबई में 25 मई को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जहां 2014 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों और रणनीति को लेकर चर्चा हुई वहीं 2014 को ध्यान में रखते हुए भाजपा राम के बाद गंगा की शरण में आ गयी है। गंगा को लेकर पहले भी अभियान छेड़ने वाली भाजपा का फायरब्रांड नेता उमा भारती ने कार्यकारिणी की बैठक में पवित्र गंगा की सुरक्षा और प्रदूषण मुक्ति नाम से प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव में गंगा की दुर्दशा और गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अब तक के अभियानों की विफलता का भी जिक्र किया…साथ ही गंगा की अविरल धारा के लिए जनजागरण अभियान शुरू करने का भी संकल्प लिया गया। भाजपा का आरोप है कि गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिए जाने के बाद भी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए। उमा भारती के कहने पर बैठक में मौजूद सभी नेताओं को गंगा की रक्षा का संकल्प भी लिया। निर्मल गंगा के लिए भाजपा बड़ा आंदोलन करेगी…जिसके लिए भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने एक कमेटी के गठन का भी ऐलान किया। इसके साथ ही आंदोलन की कमान भी उमा भारती को सौंपी गयी है। भाजपा भले ही अपना प्रस्तावित आंदोलन अविरल गंगा और स्वच्छ गंगा के नाम पर होने की बात कर रही हो…लेकिन यहां भी भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है। भाजपा ने ये एजेंडे दरअसल मिशन 2014 ध्यान में रखकर तैयार किया है ताकि राम के बाद अब गंगा के नाम पर लोगों को साधा जाए…और उनकी धार्मिक आस्था को जगाकर एक बार फिर राम की तरह गंगा के नाम पर वोट बटोरे जाएं। गोमुख से लेकर गंगासागर तक गंगा 25 सौ 25 किलोमीटर की यात्रा तय करते हुए पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के गुजरती है…औऱ करीब 40 करोड लोग गंगा के तट पर रहते हैं…यानि की देश की आबादी का करीब तीसरा हिस्से का तो गंगा से सीधे जुड़ाव है…और बाकी लोग आस्था से तो गंगा से जुड़े ही हुए हैं…यानि की राम के बाद अब गंगा के सहारे भाजपा अपने मिशन 2014 को सफल बनाने की कोशिश कर रही है। बहरहाल राम के बाद गंगा की शरण में आयी भाजपा का आंदोलन गंगा को प्रदूषण से कितनी मुक्ति दिला पाता है और गंगा मैया की कितनी कृपा होती है ये तो समय ही बताएगा लेकिन एक बार फिर से धर्म के नाम पर भाजपा ने सत्ता का चाबी हासिल करने की पूरी तैयारी कर ली है।












दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

शुक्रवार, 25 मई 2012

भाजपा…संविधान और गडकरी


भाजपासंविधान और गडकरी
नितिन गडकरी जब तीन साल पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के रूप में ताजपोशी हुई थी तो हर कोई हैरान था। अध्यक्ष बनने से पहले राष्ट्रीय राजनीति के नए नवेले चेहरे गडकरी को कुर्सी मिली तो भाजपा ही नहीं बल्कि गैर भाजपाई दलों के नेताओं के साथ ही आम लोगों के लिए भी गडकरी उत्सुक्ता का विषय बन गए थे। भाजपा में बड़े बड़े दिग्गज़ों की जगह गडकरी को जब कुर्सी मिली थी तो इतना तो साफ हो ही गया था कि गड़करी भाजपा के शीर्ष नेताओं की नहीं बल्कि संघ की पसंद थेऔर संघ की पसंद होने के नाते गडकरी की ताजपोशी के विरोध करने की हिम्मत भी दूसरे भाजपाई नहीं उठा सके थे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को दिसंबर 2012 में तीन साल पूरे हो जाएंगेऔर भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता हैसाथ ही भाजपा का संविधान भी कहता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर एक ही व्यक्ति की ताजपोशी दो बार लगातार नहीं हो सकतीलेकिन नितिन गड़करी इसके बाद भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे। जी हां 24 मई को मुंबई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा ने अपने संविधान में इस संबंध में संशोधन कर दिया है जिससे एक ही व्यक्ति के दो बार लगातार राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का रास्ता साफ हो गया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखाजिसका अनुमोदन पूर्व अध्यक्ष वैंकेयानायडू ने कियाजिसे कार्यकारिणी ने हरी झंडी दे दी हैलेकिन अभी इस पर भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की मुहर लगनी बाकी है। दरअसल संघ 2014 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष बदलने के मूड में नहीं थाजिसके चलते ही नौ महीने बाद हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सबसे पहले गड़करी को लगातार दूसरी बार अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी के संविधान में संशोधन किया गया। खबर तो यहां तक है कि अनुशासित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में संविधान में संशोधन को लेकर विरोध के स्वर भी उठे। भाजपा नेता संघप्रिय गौतम और जेके जैन ने प्रस्ताव पर चर्चा कराने की भी मांग कीलेकिन इनकी बात को दरकिनार कर कार्यकारिणी ने प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दीजिसका मतलब साफ है कि दिसंबर 2012 में गड़करी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद दोबारा से उनकी ताजपोशी तय हो गयी है। गड़करी की दूसरी पारी का मतलब साफ है कि भाजपा 2014 का लोकसभा चुनाव गड़करी की अगुवाई में ही लड़ेगीलेकिन देखने वाली बात ये होगी कि क्या 2014 के लोकसभा चुनाव में गड़करी अपना कमाल दिखाकर भाजपा को केन्द्र की सत्ता में वापस लौटाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं।

दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 23 मई 2012

पेट्रोल की साढ़े साती...


पेट्रोल की साढ़े साती...

22 मई को यूपीए सरकार ने तीन साल पूरे किए...दिल्ली में भव्य भोज का भी आयोजन किया...अक्सर खामोश रहने वाले हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी यूपीए 2 के तीन साल पूरे होने पर दमदारी से कहा कि अब कड़े फैसले लेने का वक्त आ गया है...और हैरत की बात तो ये है कि अक्सर अपने वादों को पूरा न करने वाली सरकार के मुखिया ने अगले ही दिन अपनी कही बात पर मुहर लगा दी। पेट्रोल के दाम में साढ़े सात रुपये का ईजाफा हो गया। अब भले ही सरकार इसके पीछे तेल कंपनियों के घाटे के साथ ही कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का तर्क दे लेकिन सच्चाई किसी से छुपी नहीं है। लोगों को उम्मीद थी की सरकार के तीन साल पूरे होने पर शायद सरकार आम लोगो को महंगाई से निजात दिलाने के लिए कारगर कदम उठाएगी...सरकार ने त्वरित कदम भी उठाए लेकिन ये महंगाई की मार से पहले से ही जूझ रहे लोगों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। यूपीए सरकार के तीन साल पूरे होने पर हमारे रिमोट संचालित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार की तारीफों के पुल बांधते नजर आ रहे थे...औऱ विश्व के खराब आर्थिक हालातों के बाद भी भारत की तेज आर्थिक रफ्तार का श्रेय लेने से भी नहीं चूके। लेकिन प्रधानमंत्री ये भूल गए कि ये उनकी सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है कि भारत में महंगाई अपने चरम पर है...और उसके लिए वे और उनकी सरकार के वे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है। कड़े फैसले लेने के मनमोहन सिंह के बयान के बाद लगा था कि शायद अब उनकी सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ और देश के बाहर जमा काले धन को लेकर उनकी सरकार कड़े फैसले लेगी...लेकिन 24 घंटे के अंदर ही पैट्रोल के दाम बढ़ने की खबर के साथ ही साफ हो गया कि उनकी बातों में कितना दम था...औऱ उनका ईशारा कौन से कड़े फैसले लेने की ओर था। पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी की अगर बात करें तो फरवरी 2010 से 15 बार पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी हुई है। साढ़े सात रुपये की ताजा बढ़ोतरी के बाद भी तेल कंपनियां डेढ़ रूपए प्रति लीटर नुकसान की बात कह रही है...यानि की आने वाले दिनों में भी पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। पेट्रोल की कीमतों में ईजाफे की खबर के बाद से ही आम लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा के साथ ही यूपीए के सहयोगियों ने भी पेट्रोल के दामों में इतनी बढ़ी बढ़ोतरी का विरोध करते हुए सरकार से रोल बैक की मांग की है। पेट्रोल के दामों में लगी आग जैसे जैसे आम लोगों तक फैल रही है...वैसे वैसे लोगों के गुस्से का ज्वालामुखी धधक रहा है...ऐसे में सरकार ने इस ज्वालामुखी को ठंडा करने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए तो ये 2014 में यूपीए 2 की हैट्रिक के सपने पर पानी जरूर फेर देगा। बहरहाल पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी के बाद से इस पर बवाल मचना तय है...और देशभर से आ रही खबरें भी कुछ इसी ओर ईशारा कर रही हैं...ऐसे में सरकार पेट्रोल की इन बढ़ी हुई कीमतों पर आम जनता के हित में कोई फैसला लेती है या फिर तेल कंपनियों के दबाव के आगे घुटने टेक देती है ये आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा। वहीं उत्तराखंड सरकार ने पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर 25 प्रतिशत वैट न लेने का फैसला लेकर प्रदेशवासियों को राहत देने की कोशिश की है...इससे प्रदेश में पेट्रोल की कीमतों में एक रुपये 87 पैसे की कमी तो आएगी...लेकिन ये राहत पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे लोगों के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान लगती है।

दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com