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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

राजनीति के कुहासे में गुम हुआ लोकपाल


राजनीति के कुहासे में गुम हुआ लोकपाल


भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल के समर्थन में अन्ना हजारे की मुहिम को मिले जनसमर्थन के बाद  केन्द्र की यूपीए सरकार ने शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल पेश तो कर दिया...लेकिन सरकार का ये बिल उसी के लिए गले की हड्डी बन गया। सरकार ने विपक्ष के भारी विरोध के बाद भी लोकसभा में बहुमत के चलते बिल तो पास करा लिया...लेकिन सरकार राज्यसभा में बिल को पास कराने में ना सिर्फ नाकाम साबित हुई बल्कि रात बारह बजे तक चली बहस के बाद भी सरकार सदन में वोटिंग से ऐन वक्त पर पीछे हट गयी...जिससे लोकपाल बिल राजनीति के कोहरे में खोकर रह गया। सरकार के इस कदम से जहां लोकपाल को लेकर सरकार पर पहले से ही हावी विपक्ष को सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने का एक औऱ मौका मिल गया...वहीं सरकार बिल पास न होने का ठीकरा विपक्षी दलों पर फोडती नजर आयी। पक्ष और विपक्ष भले ही लोकपाल के अधर में लटक जाने के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हों...लेकिन मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि करोडों देशवासियों की भावनाओं से जुडा 2011 का सबसे बडा मुद्दा साल के आखिरी महीने के आखिरी सप्ताह में देश का सबसे बड़ा तमाशा बनकर रह गया। इसे तमाशा नहीं तो औऱ क्या कहा जाएगा...कि जिस बिल के समर्थन में अन्ना हजारे ने ताल ठोकी थी...जिसे देशभर में व्यापक जनसमर्थन मिला...जिस बिल ने सरकार की चूलें हिला कर रख दी...वही बिल साल के आखिरी सप्ताह में अपने अंजाम तक पहुंचते – पहुंचते दम तोड गया। एक बार फिर जहां भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों के चेहरे पर निराशा के भाव हैं...वहीं भ्रष्टाचारियों के चेहरे खिले हुए हैं। सवाल बहुत सीधा सा है कि जिस सरकारी लोकपाल का शुरू से ही विरोध हो रहा था...इस सब को जानते हुए भी सरकार ने उसी बिल को संसद में पेश किया...औऱ जैसा कि अनुमान था लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल भाजपा सहित विपक्षी पार्टियों ने बिल का खुलकर विरोध कर इसमें संशोधन की मांग की। हमारे कुछ नेता तो बिल से इतने भयभीत थे कि बिल के पक्ष में ही नहीं थे...संशोधन तो दूर की बात है। हालांकि सरकार ने बहुमत में होने के चलते लोकसभा में तो बिल पास करा लिया...लेकिन राज्यसभा में बहुमत में न होने से सरकार को विपक्ष का भारी विरोध झेलने के बाद अपने पैर पीछे खींचने पडे। जिससे बिल एक बार फिर से अधर में लटक गया...औऱ भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई लडाई भी राजनीति के कुहासे में खो गयी। रही सही कसर टीम अन्ना के आंदोलन से अचानक कदम पीछे खींचने से पूरी हो गयी...हालांकि टीम अन्ना ने पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में जनवरी – फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस औऱ बिल का विरोध करने वाले दूसरे राजनैतिक दलों के खिलाफ प्रचार कर अपना आंदोलन जारी रखने की बात कही है। बहरहाल लोकपाल को लेकर छाया कुहासा फिलहाल जल्द छंटने के कोई आसार नहीं है...ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में टीम अन्ना की ये मुहिम कितना रंग लाती है...ये तो चुनाव में भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा त्रस्त मतदाता ही तय करेंगे। उम्मीद करते हैं देश के सबसे जरूरी मुद्दे पर सरकार औऱ राजनैतिक दलों के सुपरहिट तमाशे का फल जनता उन्हें जरूर देगी...औऱ ईमानदार औऱ स्वच्छ छवि वाले नेता के हाथों में देश का भविष्य होगा...औऱ भष्टाचारियों को मुंह की खानी पडेगी।

दीपक तिवारी
8800994612